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________________ क. ख. ग. च. झ. ट. ठ. पुष्पिकाओ इति श्री रत्नचूड रास संपूणं ॥ छ ॥ सकल पंडित शिरोमणि पंडित श्री ५ सूरविजयगणि तत् शिष्य प्रीतविजय लिखितं समाप्तं । इति रत्नचूडरासः ॥ श्री ॥ छः ॥ इति श्री रत्नचूड चोप | चउपई || संपूर्ण ॥ संवत १७१५ वर्षे चैत्र मासे कृष्णपक्षे ४ः । दिने । पंडित श्री ५ श्री सुमतिविजयग० शिष्य मु० साधुविजय लिषिते ॥ श्री इति श्री रत्नचूडरास संपूर्णः ॥ लिखित् १७२६ वर्षे माघ वदि ११ दिने ॥ दुहा— उत्तम आदरी आय, ऊदाऊ भजी नही । जिम हर धतरांहिं, विरूआहिं विरचइ नहीं ॥ इति श्री सुपात्रदानविषये रत्नचूड प्रबंध संबंध संपूर्णः । इति श्री पात्रदानविषये रत्नचुडकुमार चउपइ ॥ संपूर्णः ॥ श्री ॥ अति रत्नचूडचरित्र संपूर्ण ॥ समाप्त ॥ मति ॥ श्री ॥ च्छ ॥ श्री च्छ॥ श्री ॥ छ ॥ श्री छ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002641
Book TitleRatnachuda Rasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages78
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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