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________________ रत्नचूड-रासे अंग-ओलगू राखिसि राति मोकलिसिउं मोटइ परभाति रातिइ राजा पउढिउ जाम ऊलग सारइ जागइ ताम १४८ सुख-सिज्या रा पउढिउ सही रोहा नई तव निद्रा हूई पहिलइ पहरइ जागइ जाम रोहा नई बोलावइ ताम १४९ पाटू मेहलि जगाबइ राइ कहि रे रोहा सूत उ काई ना जी हूं जागउं छउं ताय चिंता छइ मुझ-नई मन-माहि १५० जागिउ राजा पूछइ वात एह-नर अरथ कह उ तुम्हे तात बीजउं चउपउं छाण जि करइ छाली-नी लोंडी कुण घडइ १५१ राजा भणइ न जाणउं अम्हे एह संदेह जि भांजउ तुम्हे संवर्तक वाउ अछइ पेट-माहि तीणइ लींडी वाटुली थाइ १५२ हूं सूउं छउं निश्चंत थई तउं रूडई जागेजे भई राजा जागिउ बीजइ पहरि रोहानइ पणि छइ बिवहुरि १५३ बोलाविउ तर बोलइ नही गोटीलइ जगाडिउ सही तिह्वारनी मुझ निद्रा टली राजा जागिउ पूछइ वली १५४ कहि रोहा तई चिंतिउ किसिउं हाथी कउठ गलइ मुखि जिसिउं आखउं मेहलइ ते नीहारि पुदगल नुहइ तेह-मझारि १५५ राउ भणइ रोहा कहि वत्त एह न ऊपजइ अम्ह-नई तत्त कउठ कठिण ऊपरि पुण जाणि हरियइ पुदगल अगनि-पराणि १५६ १४८. ग.झ. राखिसु . ३. झ. निदा हुई. ४. झ. तुं जागे रे भई. १४९. २. ठ. मां नथी. १५०. १. गाठ. जगाडिउ; घ.च. जगाड्यु. ३. क. स्वामि; च. मारी जगाड्यो. ४. क. थई छइ सामि; ग.घ. अछइ मुझ मन. १५२. २. च. एहनो उत्तर आपो. १५३. १. ग. सूतो. २. क. तुं जो; ग. तु जु, जागि; घ. तु जु जागइ. ४ ख झ. थई; ग. जोइइ बिन्नु हर'; घ.अछइ पुण बिठु हुई. १५४. २. क. गोटीलइ जगाविउ, ख.झ. कोटी लइ; ग जगाव्यु. घ. जगाविउ. ३. क 'मुझ' ने स्थाने 'ते'; ठ. मू. ग.च. ते रोहानी निद्रा. घ. रोहो कहइ; झ. तव रोहा नइ. ४. क. जगावी; ग. जगाइतु पूछठ. ठ. पूछि छि. १५५. २. क. ळीइ मुखि सिउं; ग गलीइ मुख सिउ, च मुख स्यु. ४. ग.च. न हुइ. १५६. १. ख. एह; घ. सुणि; च. वृत्तांत; झ. एय २. क. एहनु; ख.झ. अन्हे न जाणु एह नउ भेयः घ.च. चित्ति; ठ. एहबू, तात. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002641
Book TitleRatnachuda Rasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages78
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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