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________________ [62] परिवर्तन करना होगा तब द्वितीयान्त 'मासम् ' पद का प्रथमा विभक्ति में परिवर्तन नहीं होगा । (केवल मुख्य कर्मकारक वाच्य 'वेदम्' पदमें परिवर्तन होकर, 'देवदत्तेन वेदः मासम् अधीयते' | ऐसा ही होगा ।) 3.3 रूपसाधनिका में ध्वनिपरिवर्तन करने के लिए व्याकरणिक अर्थों का विनियोग : रूपसाधनिका की प्रक्रिया के दौरान प्रकृति + प्रत्यय का जो क्रमिक संयोजन वर्णित किया गया है, उसके तृतीय या पञ्चम सोपान पर लिङ्ग वचनादि रूप व्याकरणिक अर्थों को उल्लिखित करके कई जगह पर ध्वनिपरिवर्तन उद्घोषित किया गया है । यथा (१) तस्माच्छसो नः पुंसि । ६-१-१०३ राम + शस् राम + अस्, पूर्वसवर्ण दीर्घ रामास्→ अब 'राम' शब्द पुंलिङ्ग में है इसलिए शस् के 'स्' कार को 'न्' कार होता है रामान् । (२) आङने नाऽस्त्रियाम् । ७३ - २० सूत्र से 'हरि + टा इस अवस्था में, घि संज्ञक 'हरि' शब्द के पीछे आये हुए /- टा/ प्रत्यय के स्थान में / -ना/ आदेश होता है, तब हरि + ना हरिणा । रूप सिद्ध हो जाता है । (३) इसी तरह से ह्रस्वो नपुंसके प्रातिपदिकस्य । १-२-४७ से 'श्रीपा' को 'श्रीप' ऐसा हुस्वादेश होता है; जिसमें नपुंसकलिङ्ग रूप व्याकरणिक अर्थ को ही ध्यान में लिया गया है । (श्रियं पाति यद् आयुधम् तद् 'श्रीपा' श्रीम् 1) - (४) यहाँ पर त्वमावेकवचने । ७-२-९७ एवं त्रिचतुरोः स्त्रियां तिसृचतसृ । ७-२९९ इत्यादि अन्यान्य सूत्र की और भी ध्यान आकृष्ट किया जा सकता है । 3.4 अर्थभेद से प्रेरित रूपभेद की प्रवृत्ति : कि पाणिनि ने 'अर्थ' के द्वारा जो विभिन्न कार्य लिए है उनमें से एक कार्य ऐसा भी है अर्थ को पुरस्कृत करके दो प्रकार के रूप को सिद्ध किया है । सामान्य रूप से तो दो वैकल्पिक रूप समान अर्थ में ही प्रयुक्त होते है (यथा वोतो गुणवचनात् । ४-१-४४ मृदुः मृद्वी); परन्तु भाषा में कतिपय स्थान ऐसे भी है कि जहाँ अर्थभेद होने के कारण ही रूपभेद उत्पन्न होता है । यथा - पुष्करादिभ्यो देशे । ५-२- १३५ पुष्करादिगण के शब्दों को / - इनि/ प्रत्यय लगता है, जब उस इनि प्रत्ययान्त शब्द से 'देश' रूप अर्थ अभिधेय रहे तब । यथा पुष्करिणी (नाम का कोई देश ) । किन्तु जब देश वाच्य न हो तब मतुप् प्रत्यय ही प्रवृत्त होगा । यथा पुष्करवान् हस्ती । जिस हाथी की शूण्डा में कमल है, वह 'पुष्करवान्' कहा जायेगा । - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002635
Book TitlePaniniya Vyakarana Tantra Artha aur Sambhashana Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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