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________________ ४६ मायापाश में फंस जाता, अथवा विवाह कर लेता । इस संबन्ध के अनेक आख्यान प्राकृत जैन कथा - ग्रंथों में उपलब्ध हैं । उज्जैनी निवासी वसुदत्ता का विवाह कौशांबी के धनदेव सार्थवाह के साथ हुआ था । एक बार उसका पति परदेशयात्रा के लिए गया । वसुदत्ता को पता चला कि व्यापारियों का काफला उज्जैनी जा रहा है। उज्जैनी में माता-पिता को मिलने की इच्छा से उसने अपने सास-ससुर से काफले के साथ जाने की अनुमति माँगी । उन्होंने कहा- तुम गर्भवती हो और तुम्हारा पति परदेश में है, अकेले तुम कहाँ भटकती फिरोगी ? लेकिन वह नहीं मानी और अपने शिशुओं को लेकर चल पड़ी। आगे जाकर वह काफले से भ्रष्ट हो गयी। इस बीच में उसका से लौट आया । अपने पुत्र और स्त्री के स्नेह के वशीभूत हो वह चल दिया । पति प्रवास उनकी खोज में कितने ही प्रसंग ऐसे आते जब पोतवणिकों की पत्नियों को अपने शील की रक्षा करना कठिन हो जाता । चीन की यात्रा से लौटने पर अपनी पत्नी का व्यवहार देख धरण को उसके चरित्र पर संदेह होगया । टोप्प सेठ को उसने आदि से अंत तक सारा वृतान्त कह सुनाया । उसने कहा- मेरी पत्नी जीवित तो है, लेकिन शील से नहीं । कौशांबी के धनदत्त नामक व्यापारी की रूपवती कन्या सुंदरी का विवाह यशोवर्धन से हो गया था । लेकिन यशोवर्धन बड़ा कुरूप था अतएव उसकी पत्नी के मन वह नहीं भाता था । एक बार यशोवर्धन ने बहुत-सा माल लेकर परदेश जाने का इरादा दिया । उसने अपनी पत्नी से भी साथ चलने को कहा लेकिन उसने बहाना बना दिया । पति के परदेश चले जाने पर वह अपने पीहर जाकर रहने लगी । एक दिन अपने भवन की ऊपर की संवार रही थी कि कोई राजकुमार वहाँ से १. मंजिल में बैठी हुई वह अपने केश गुजरा। दोनों की आँखें मिल गई । सुन्दर के परदेश जाते समय उसकी माँ ने उसे उपदेश दिया बेटा ! विषय भोग से और चोरों से सदा अपनी रक्षा करना। याद रख, जवानी की उम्र जंगल के समान बड़ी मुश्किल से पार की जाती है। कहीं ऐसा न हो कि स्त्रियों के पाश में फंस जाओ । देखिए, कुमारपाल प्रतिबोध; 'रमणी के रूप' में 'नगरी के न्यायी पुरुष' शीर्षक कहानी तथा शुकसप्तति (कथा ३३) कथासरित्सागर उपकोशा की कथा (१-४) वसुदेवहिंडी, पृ० ५९-६० समराइच्चकहा, छठा भव २. ३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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