SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हायनसुन्दर इस प्रति का क्रमांक ला० द० विद्यामंदिर अहमदाबाद का १०८० है । इस प्रति का परिमाण २५.२४११ से. मी. है । इसके कुल पत्रों की संख्या ६ है । प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियाँ हैं तथा प्रत्येक प'क्ति में ३६ से ३९ तक अक्षर पाये जाते हैं । यह प्रति किनारों पर से फटी हई है। इस प्रति का अनुमानित लेखन संवत् १९ वीं शती है। यह ज्योतिष शास्त्र से सम्बंधित ग्रंथ है। इसके प्रकरणों के नाम व श्लोकों की संख्या निम्न प्रकार से है। प्रथम प्रकरण का नाम सूर्यदशाप्रकरणम् है तथा श्लोकों की संख्या २५ है । द्वितीय प्रकरण का नाम चन्द्रवर्णप्रकरणम् है तथा श्लोकों की संख्य २५ है । तृतीय प्रकरण का नाम भौमवर्षोशफलप्रकरणम् है तथा श्लोकों की संख्या १६ है। चतुथ प्रकरण का नाम बुधवशफलप्रकरणम् है, श्लोकों की संख्या २१ है। पंचम प्रकरण का नाम गुरुवर्णेशफलप्रकरणम् है, श्लोकों की संख्या १९ है । षष्ठ प्रकरण का नाम शुक्रवर्षोशफलप्रकरणम् है एवं श्लोकों की संख्या १७ है। सप्तम प्रकरण का नाम शनिवशफलप्रकरणम् है एवं श्लोकों की संख्या १७ है । तथा अष्टम प्रकरण का नाम ग्रहस्वरूपप्रकरणम् (?) है एवं श्लोकों की संख्या १३ है। इस प्रकार सम्पूर्ण मथ के श्लोको की संख्या १५३ है। आदि- शुभग्रहयुगैः सौम्यैर्वर्षे स्वामिदशायुतः । रोगोद्वेगापदाँ नाशः सुतदारादिसम्पदः ॥ १ ॥ अन्त एवं ग्रहस्वरूप विचार्य वाच्यं मनीषिभिस्तद्वत । सर्व शुभाशुभ वा विशेयं गुरुमुखात् सम्यक् ।। १२ ।। श्रीपद्मसुदरमुनिप्रोक्तं सूर्यक्रमाच्छतो जीयात् । आचंद्रतारकमसौ श्रीहायनसुंदरो ग्रंथ: ॥१३ ।। इति श्रीहायनसुंदरग्रथः समाप्तः ।। जम्बूचरित्र या जम्बूअज्झयण (प्राकृत) यह पद्मसुन्दरगणिकृत प्राकृत काव्य हैं। इसकी रचना गद्य-पद्य मिश्रित है। इस काव्य में जम्यूस्वामी (जैनों के आन्तम केवली) के जीवन चरित का वर्णन पाया जाता है। मूल गाथाएँ प्राकृत में हैं तथा स्तबक गुजराती भाषा में लिखा हुआ है। इस काव्य की प्रस्तुत प्रति ला० द० विद्यामंदिर अहमदाबाद की है। इस प्रति का क्रमांक ५११६ है। इस प्रति का लेखन संवत् १८६८ का है। प्रति के लेखक का नाम जनचन्द्र है। यह प्रत काननपुर (कानपुर) में शिष्य चिरं० सरूपचंद के पठन-पाठन हेतु लिखी गई है । यह प्रत स्तबकयुक्त है। इस काव्य में कुल २१ उद्देश हैं। इस काव्य की प्राचीनतम प्रति जो हमने देखी वह संवत् १८५०, शाक सं० १७१५ की पाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy