SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आधुनिक विद्वान् इन्हें मानने को तैयार नहीं हैं । परन्तु अन्तिम दो तीथकर पार्श्वनाथ एवं महावीर की आयु, कुमारकाल, ऊँचाई, वर्ण, तीर्थ आदि सभी बातें तार्किकता की दृष्टि से समुचित जान पड़ती हैं। भगवान पार्श्व ने सौ वर्ष की आयु तक जीवन यापन किया । उनकी ऊँचाई नौ हाथ थी । वर्ण नीला था । कुमारावस्था तीस वर्ष, तीर्थकाल दो सौ पचास वर्ष तक इनमें कोई भी बात शंका को जन्म देने वाली नहीं है । सभी बातें इस युग के अनुसार समीचीन दृष्टिगोचर होती हैं । श्री की ऐतिहासिकता को सिद्ध करने वाले विभिन्न मत सर्वप्रथम डॉ० हर्मन जैकोबी ने जैनागमों तथा बौद्धपटिकों के प्रमाणों द्वारा भगवान पाप को एक ऐतिहासिक पुरुष प्रतिपादित किया है । 1 उन्होंने 'स्टडीज इन जैनिज्म, ' संख्या १, पृष्ठ ६ पर लिखा है "परम्परा की अवहेलना किये बिना हम महावीर को जैन धर्म का संस्थापक नहीं कह सकते । उनके पूर्व के पार्श्व (अन्तिम से पूर्व के तीर्थ कर) को संस्थापक मानना अधिक युक्तियुक्त है । पार्श्व की परम्परा के शिष्यों का उल्लेख जैन आगम ग्रन्थों में मिलता है । इससे स्पष्ट है कि पार्श्व ऐतिहासिक पुरुष हैं ।" 2 इसके अतिरिक्त उन्हों ने सेक्रेड बुक्स ऑव द ईस्ट (जैनसूत्रास्) (भाग ४५, पृष्ठ २१-२२ में भी पानाथ की ऐतिहासिकता सिद्ध की है। उन्हों ने बौद्धपिटकों का उद्धरण देते हुए लिखा है, "बुद्ध से पूर्व ही निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय यहाँ मौजूद था । तत्सम्बन्धित उद्धरण बौद्ध साहित्य में यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं, जब कि निर्ग्रन्थ साहित्य में बुद्ध और बौद्ध धर्म का कोई उद्धरण नहीं है । " 3 वस्तुतः जब बुद्ध का जन्म हुआ था, उस समय निर्मन्थों के त्रेसठ सम्प्रदाय प्रचलित थे । दीर्घनिकाय के सामा फलमुत्त, पृ० २१ के अनुसार उनमें छह सम्प्रदाय अत्यधिक प्रसिद्ध थे । उन सम्प्रदायों के आचार्य क्रमशः मक्खलिगोशाल, पूरणकाश्यप, अजितके सकम्बल, प्रक्रुध कात्यायन, निगंठनाथपुत्त और संजयबेलट्ठित थे f विमल ६० अनन्त ५० धर्म ४५ शान्ति ४० ६० ३० १० "" "" Jain Education International 33 "" 33 23 33 १ कुन्धु ३५ ९५ हजार अर ३० ८४ मल्लि २५ ५५ " 1 • That Parshva was a historical person, as very probable The Sacred XLV, Introduction, page 21. सुव्रत २० नमि १५ "" नेमि १० पार्श्व ९ हाथ बर्धमान ७ हाथ ३० १० १ For Private & Personal Use Only "" १०० 22 ܕܙ वष ७२ "" is now admitted by all Books of the East, Vol. 2. तीर्थ कर पाश्वनाथ भक्तिगंगा, सं० डॉ० प्रेमसागर जैन, वाराणसी, १९६९, पृ० ८ । 3. वही, पृ० ८ । www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy