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________________ (६) छठे वलय में आचार्य परमेष्ठी के ३६ गुणों की पूजा मोहात्ययादाप्तट्टशोः स पंचविंशातिचारत्यजनादवाप्तां । सम्यक्त्वशुद्धिं प्रतिरक्षतोऽर्चे आचार्यवर्यान् निजभावशुद्धान् ॥१३१।। भाषा भुजंगप्रयात छन्द हटाए अनन्तानुबन्धी कषाये, करणसे हैं मिथ्यात तीनों खपाए । अतीचार पच्चीसको हैं बचाए, सु आचार दर्शन परम गुरु धराए । ॐ ह्रीं दर्शनाचारसंयुक्ताचार्यपरमेष्ठिभ्योऽय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । विपर्ययादिप्रहृतेः पदार्थज्ञानं समासाद्य परात्मनिष्ठं । दृढ़प्रतीतिं दधतो मुनींद्रानः स्पृहाध्वंसनपूर्णहर्षान् ॥१३२।। भाषा- न संशय विपर्यय न है मोह कोई, परम ज्ञान निर्मल धरे तत्त्व जोई । स्वपरज्ञानसे भेदविज्ञान धारे, सु आचार ज्ञानं स्व अनुभव सम्हारे ।। ॐ ह्रीं ज्ञानाचारसंयुक्ताचार्यपरमेष्ठिभ्योऽय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । आत्मस्वभावे स्थितिमादधानांश्चरित्रचारुव्रतधौर्यधर्तृन् । द्विधा चरित्रादचलत्वमाप्तानार्यान् यजे सद्गुणरत्नभूषान् ॥१३३॥ भाषा- सुचरित्र व्यवहार निश्चय सम्हारे, अहिंसादि पांचों व्रत शुद्ध धारे । अचल आत्ममें शुद्धता सार पाए, जजूं पद गुरु के दख अष्ट लाए । ॐ ह्रीं चारित्राचारसंयुक्ताचार्यपरमेष्ठिभ्योऽय॑म् निर्वपामीति स्वाहा । बाह्यांतरद्वैधतपोऽभियुक्तान् सुदर्शनाद्रिं हसतोऽचलत्वात् । __ गाढावरोहात्मसुखस्वभावान् यजामि भक्तया मुनिसंघपूज्यान् ॥१३४|| भाषा- तपें द्वादशों तप अचल ज्ञानधारी, सहें गुरु परीषह सुसमता प्रचारी। परम आत्म रस पीवते आपही तें, भजू में गुरु छूट जाऊं भवों तें ॥ ॐ हीं तपाचारसंयुक्ताचार्यपरमेष्ठिभ्योऽय॑म् निर्वपानीति स्वाहा । स्वात्मानुभावोद्भटवीर्यशक्ति दृढा भियोगावनतः प्रशक्तान् । परीषहापीडनदुष्टदोषागतौ स्ववीर्यप्रवणान् यजेऽहं ॥१३५!। भाषा- परम ध्यान में लीनता आप कीनी, न हटते कभी घोर उपसर्ग दीनी । सु आतम बली वीर्यकी ढाल धारी, परम गुरु जजू अष्ट द्रव्ये सम्हारी ।। ॐ हीं वीर्याचारसंयुक्ताचार्यपरमेष्ठिभ्योऽय॑म् निर्वपामीति स्वाहा। चतुर्विधाहारविमोचनेन द्वित्र्यादिघस्रेषु तृषाक्षुधादेः । अम्लानभावं दधतस्तपस्थान मि यज्ञे प्रवरावतारान् ॥१३६।। ७८] [प्रतिष्ठा-प्रदीप] Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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