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________________ ७२४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ अपश्चिम मारणान्तिक संलेखना-मृत्यु के समय कषायों का उपशमन कर शरीर-मूर्छा से दूर होकर किया जाने वाला अनशन । अप्रतिकर्म--अनशन में उठना, बैठना, सोना, चलना आदि शारीरिक क्रियाओं का अभाव । यह पादोपगमन अनशन में होता है। अभिगम-साधु के स्थान में प्रविष्ट होते ही श्रावक द्वारा आचरण करने योग्य पाँच विषय। वे हैं-१.सचित्त द्रव्यों का त्याग, २. अचित द्रव्यों को मर्यादित करना, ३. उतसंग करना, ४. साधु दृष्टिगोचर होते ही करबद्ध होना और ५. मन को एकाग्र करना । अभिग्रह-विशेष प्रतिज्ञा। अभिजाति-परिणाम। अरिहन्त-राग-द्वेष रूप शत्रुओं के विजेता व विशिष्ट महिमा-सम्पन्न पुरुष । अर्थागम-शास्त्रों का अर्थरूप। अर्हत्-देखें, अरिहन्त। अवधिज्ञान-इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना, केवल आत्मा के द्वारा रूपी द्रव्यों को जानना। अवपिणी काल-कालचक्र का वह विभाग, जिसमें प्राणियों के संहनन और संस्थान क्रमशः हीन होते जाते हैं, आयु और अवगाहना घटती है तथा उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषाकार तथा पराक्रम का ह्रास होता जाता है। इस समय में पुदगलों के वणं, कन्ध, रस और स्पर्श भी हीन होते जाते हैं। शुभ भाव घटते हैं और अशुभ भाव बढ़ते जाते हैं। इसके छः आरा--विभाग हैं : १. सुषम-सुषम, २. सुषम, ३. सुषम-दुःषम, ४. दु.षम-सुषम, ५. दुःषम और ६. दुःषम-दुःषम।। अव स्वापिनी-गहरी नींद। असंख्यप्रदेशी-वस्तु के अविभाज्य अंश को प्रदेश कहते हैं। जिसमें ऐसे प्रदेशी की संख्या असंख्य हो, वह असंख्यप्रदेशी कहलाता है । प्रत्येक जीव असंख्य-प्रदेशी होता है। आकाशातिपाती--विद्या या पाद-लेप से आकाश-गमन करने की शक्ति अथवा आकाश से रजत आदि इष्ट या अनिष्ट पदार्थ-वर्षा की दिव्य शक्ति। आगारधर्म-अपवाद-सहित स्वीकृत व्रत-चर्या । आचार-धर्म-प्रणिधि-बाह्म वेष-भूषा की प्रधान रूप से व्यवस्था। आतापना-ग्रीष्म, शीत आदि से शरीर को तापित करना। आत्म-रक्षक-इन्द्र के अंग-रक्षक। इन्हें प्रतिक्षण सन्नद्ध होकर इन्द्र की रक्षा के लिए प्रस्तुत रहना होता है। आमषर्षोध लब्धि-तपस्या-विशेष से प्राप्त होने वाली एक दिव्य शक्ति। अमृत-स्नान से जैसे रोग समाप्त हो जाते हैं, उसी प्रकार तपस्वी के संस्पर्श मात्रा से रोग समाप्त हो जाते हैं। ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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