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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड :३ सम्पत्ति दी। पद, प्रतिष्ठा, वैभव आदि की दृष्टि से महौषध अब बहुत ऐश्वर्यशाली था। केवल पाञ्चालराज का ही ऐश्वर्य उससे अधिक था, और सब उससे न्यून थे। महौषध का संशय महौषध के मन में विचार आया, राजा ने एकाएक मुझे इतना उच्चपदासीन, इतना वैभवशाली ऐश्वर्यशाली बना दिया, इसमें कोई गूढ रहस्य तो नहीं है ? कभी-कभी कूटनीतिज्ञ राजा लोग हत्या करवा देने की नीयत से भी ऐसा करते हैं। मुझे राजा की परीक्षा करनी चाहिए कि वास्तव में वह मेरा सुहृद् है या दुहद् । पर यह कार्य सरल नहीं है। कोई सामान्य व्यक्ति इसका पता नहीं लगा सकता। भेरी परिवाजिका ही इसका पता लगा सकती है; क्योंकि वह परमप्रज्ञाशीला और ज्ञानशीला है । वह किसी-न-किसी युक्ति द्वारा यह जान लेगी। ___ महौषध पण्डित पूजोचित अनेक सुरभित पदार्थ, पुष्पमाला आदि लेकर परिवाजिका के आवास स्थान पर पहुँचा। उसे नमस्कार किया, उसकी अर्चना की। उससे कहा"आर्ये ! जिस दिन तुमने राजा के समक्ष मेरी विशेषताओं की, गुणों की चर्चा की, तबसे राजा का बर्ताव मेरे प्रति बिलकुल बदल गया है। उसने मुझे बहुत धन दिया, सेनापति का पद दिया, प्रतिष्ठा भी, दे रहा है। मुझे नहीं मालूम, राजा की यह प्रवृत्ति स्वाभाविक है या अस्वाभाविक-अपने साथ कोई गूढ रहस्य लिये हुए है । बहुत उत्तम हो, यदि किसी उपाय ये यह पता लगा सको कि राजा का मेरे प्रति वस्तुत: कैसा भाव है ?" परिवाजिका का प्रश्न परिव्राजिका ने महौषध का अनुरोध स्वीकार किया। दूसरे दिन राजभवन की ओर जाते समय जल-राक्षस सम्बन्धी प्रश्न उसके ध्यान में आया। उसने विचार किया, गुप्तचर के सदृश चतुरतापूर्वक युक्तिपूर्वक राजा से प्रश्न पूछ कर ज्ञात करूं कि वास्तव में वह महौषध का सुहृद् है या नहीं। परिवाजिका राजभवन में गई। भोजन किया। भोजन के पश्चात् बैठी। राजा भी उसके पास आया तथा एक ओर बैठ गया। परिवाजिका ने विचार किया, यदि महौषध पण्डित के प्रति राजा की भावना कलुषित होगी तो वह उस विषय में सबके सामने अपने वे विचार उगल देगा, जो उचित नहीं होगा। इसलिए मैं उसके साथ एकान्त में बातचीत करूं। यह सोचकर उसने राजा से कहा-“मैं तुमसे एकान्त में कुछ वार्तालाप करना चाहती हूँ।" राजा ने अपने आदमियों को, जो उसे घेरे बैठे थे, चले जाने का संकेत किया। संकेत पाकर वे वहाँ से चले गये। राजा और परिव्राजिका दो ही व्यक्ति वहाँ रह गये। परिव्राजिका बोली--"महाराज ! मैं तुमसे कुछ प्रश्न पूछना चाहती हूँ।" राजा ने कहा-"आर्य ! पूछो। यदि उस विषय में मेरा ज्ञान होगा, जानकारी होगी तो उत्तर दूंगा।" __ परिव्राजिका ने पूछा- "तुम सात व्यक्ति-पहली माता तलताल देवी, दूसरी महारानी नन्दा देवी, तीसरा तीक्ष्णमंत्री सत्वर मन्त्रणानिपुण कुमार-भाई, चौथा धनुशेखर मित्र, पांचवां राजपुरोहित, छठा महौषध पण्डित तथा सातवें तुम स्वयं नौका द्वारा गाध सागर को पार कर रहे हों । सागर के बीच तुम्हें जलराक्षस मिल जाए, नौका को ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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