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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग " कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २५१ बौना पिंगुत्तर मिथिला में पिंगुत्तर नामक एक बौना था। वह शिल्प सीखने हेतु तक्षशिला गया। वहाँ के सुप्रसिद्ध आचार्य के पास शिल्प सीखना आरंभ किया। उसने शीघ्र ही शिल्प का शिक्षण समाप्त कर लिया। आचार्य से उसने वापस जाने की आज्ञा मांगी। वहाँ की यह परम्परा थी, यदि कोई विवाह योग्य कन्या होती तो वह प्रमुख शिष्य को दी जाती। उस आचार्य के एक कन्या थी। वह बहुत रूपवती थी, देवांगना जैसी सुन्दर थी। आचार्य ने पिंगुत्तर से कहा-"तात् ! तुझे अपनी कन्या देता हूँ। उसे लेकर जाओ।" वह युवा बौना भाग्यहीन था। कन्या बड़ी पुण्यशालिनी थी। पिंगुक्तर ने उसे देखा तो वह उसे प्रिय नहीं लगी । अपनी रुचि के प्रतिकूल होते हुए भी आचार्य के अनुरोध को वह कैसे टाले, यह सोचकर उसने उस कन्या को स्वीकार कर लिया । आचार्य ने कन्या उसे दे दी। रात का समय था। सुसज्जित शयनागार में जब पिंगुत्तर शय्या पर सोया तो वह कन्या शय्या पर आई। वह घबरा गया। वह शय्या से नीचे उतर आया, पृथ्वी पर लेट गया । वह कन्या भी शय्या से उतर कर उसके समीप गई। पिंगुत्तर भूमि से उठा, शय्या पर जा सोया। वह कन्या फिर उसके समीप गई । पिंगुत्तर शय्या से नीचे आकर पुन: भूमि पर सो गया। बात सही है. अभागे का लक्ष्मी के साथ मेल नहीं बैठता। इस बावजूद कुमारी एकाकिनी शय्या पर ही लेटी और वह बौना पृथ्वी पर लेटा । इस प्रकार पात दिन व्यतीत हो गये । बौने ने उसे साथ लिया, आचार्य को प्रणाम किया और वे वहां से रवाना हए। मार्ग में पति-पत्नी के बीच परस्पर वार्तालाप तक नहीं हुआ। दोनों में एक-दूसरे के प्रति अरुचि का भाव था। चलते-चलते वे मिथिला के समीप पहुँच गए । नगर से कुछ ही दूरी पर एक गूलर का वृक्ष था। वह फलों से ढंका था। पिंगुत्तर ने जब उस वृक्ष को देखा, तो उसके मन में फल खाने की इच्छा उत्पन्न हुई। वह उस वृक्ष पर चढ़ा तथा उसने गूलर खाये। उसकी पत्नी भी भूखी थी, वृक्ष के समीप गई तथा अपने पति से बोली-'मेरे लिए भी तुम गूलर के फल गिराओ।" पिंगुत्तर ने उत्तर दिया-'क्या तुम्हारे हाथ-पैर नहीं हैं ? खुद वृक्ष पर चढ़ जाओ, फल खा लो।" तब वह स्त्री भी वृक्ष पर चढ़ गई। उसने फल खाये। जब पिंगुत्तर ने यह देखा तो वह जल्दी-जल्दी वृक्ष से नीचे उतरा से तथा वृक्ष के तने को चारों ओर से काँटों घेर दिया। वह यह कहते हुए कि इस अभागिन से मेरा पीछा छूट गया, वहाँ से भाग गया। वृक्ष के तने के चारों ओर कांटे लगे होने से वह स्त्री नीचे नहीं उतर सकी, पेड़ पर ही बैठी रही। पटरानी उदुम्बरा राजा बगीचे में टहल कर, मनोरंजन कर सायंकाल हाथी पर बैठा वापस लौट रहा था। उसने उस गूलर के वृक्ष पर बैठी स्त्री को देखा। उसकी सुन्दरता पर वह मुग्ध हो गया। उसने अपने अमात्य द्वारा उससे पुछवाया कि तुम्हारा स्वामी है या नहीं ? उसने कहा-''कुल-परम्परा से स्वीकृत मेरा स्वामी है, किन्तु, वह मुझे इस प्रकार यहाँ छोड़कर भाग गया है।" अमात्य ने राजा के पास आकर यह बात कही। बिना स्वामी की वस्तु राजा की होती है, यह सोचकर राजा ने उसे गूलर के वृक्ष से नीचे उतरवाया। उसे हाथी पर आरूढ़ कराया, राजभवन में लाया । पटरानी के रूप में उसे अभिषिक्त किया। राजा को Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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