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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग - चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २४५ फटी हुई जमीन आई, जिसमें घोड़े का पैर चला गया और टूट गया। राजा ने आगे जाना स्थगित कर दिया और वह अपने पाटनगर में वापस लौट आया । सेनक पण्डित राजा के पास आया और पूछा - "क्या आप महौषध पण्डित को अपने यहाँ लाने हेतु प्राचीन यवमज्झक ग्राम गये ?" राजा बोला -"हां, पण्डित ! मैं रवाना हुआ था, जा नहीं सका, वापस लौट आया । " सेनक पण्डित ने कहा – “राजन् ! आप समझते हैं, मैं आपका शुभचिन्तक नहीं हूँ । ऐसा न समझें। मैं आपसे कहता रहा हूँ, आप अभी कुछ प्रतीक्षा करें, किन्तु, आपने बहुत जल्दी की, वहाँ जाने को रवाना हो गये । आपका पहला प्रयत्न ही अशुभ रहा । आपके मंगल-अश्व का पैर टूट गया । " राजा ने सेनक की बात सुनी। कुछ नहीं बोला। फिर एक दिन उसने सेनक के साथ परामर्श किया और उससे पूछा – “अब महौषध पण्डित को यहाँ ले आएँ ?" सेनक ने कहा – “राजन् ! आप स्वयं न जाएं। अपने दूत को मेजें और कहलवाएं, हम तुम्हारे पास आ रहे थे, पर, रास्ते में ही हमारे मंगल-अश्व का पैर टूट गया; अत: तुम मेरे यहाँ खच्चर को भेज दो या श्रेष्ठतर को भेज दो । खच्चर को भेजने का अर्थ है, वह खुद आयेगा तथा श्रेष्ठतर को भेजने का अर्थ है, वह अपने पिता को भेजेगा। राजा ने सेनक का कथन स्वीकार किया तथा दूत को इस सन्देश के साथ महौषध पण्डित के यहाँ भेजा । दूत प्राचीन यवमज्भक ग्राम में आया और महौषध कुमार से राजा का सन्देश कहा । महौषध ने सन्देश की रहस्यमय भाषा को समझ लिया । महौषध अपने पिता के पास आया, उससे कहा--" पितृवर्य ! राजा मुझको तथा आपको देखने की उत्कण्ठा लिये हुए है । पहले आप एक सहस्र श्रेष्ठी जनों को अपने साथ लिये वहाँ जाएं। राजा के पास रिक्तपाणि- खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। आप घृत से परिपूर्ण चन्दन - पात्र साथ लेकर जाएं। जब आप राजा से मिलेंगे तो वह आपके कुशलसमाचार पूछेगा और आपसे कहेगा कि उपयुक्त आसन देखकर बैठ जाएं। राजसभा में जो आसन आपको उपयुक्त लगे, आप उस पर बैठ जाएं। आप ज्योंही बैठेंगे, मैं पहुँच जाऊंगा । राजा मुझसे भी कुशल- समाचार पूछेगा तथा कहेगा - "पण्डित ! अपने योग्य आसन देखकर बैठ जाओ । राजा के यह कहने पर मैं आपकी ओर दृष्टिपात करूंगा । आप यह देखकर अपने आसन से उठ जाइयेगा तथा मुझे कहियेगा - "महौषध पण्डित ! तुम इस आसन पर बैठो।" सेठ ने कहा - "ठीक है, जैसा तुम कहते हो, वैसा ही करूंगा ।" सेठ राजा के यहाँ गया । दरवाजे पर ठहरा । राजा को सूचना करवाई। राजा ने भीतर आने की आज्ञा दी । वह भीतर गया, राजा को नमस्कार किया। राजा ने उसका कुशल-संवाद पूछ कर महौषध पण्डित के सम्बन्ध में जिज्ञासा की कि वह कहाँ है ?" सेठ ने कहा - " वह मेरे पीछे आ रहा है ।" यह सुनकर राजा प्रसन्न हुआ और सेठ से कहा - "अपने लिए जो उपयुक्त समझो, उस आसन पर बैठ जाओ।" सेठ यथोचित आसन पर बैठ गया । महौषध कुमार सुसज्जित हुआ । अपने साथी एक सहस्र बालकों को साथ लिया । अलंकारों से सुसज्जित रथ में बैठकर नगर में प्रविष्ट हुआ। नगर में प्रवेश करते समय Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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