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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग वि. गावागुयोनीव-जवदिशी : पायासी राजन्य २०१ मनुष्य-सदृश प्रतीत होते हो। राजन्य ! तुम अपनी मिथ्या मान्यता और असत् सिद्धान्तों को त्याग दो। इससे तुम्हारा भविष्य तुम्हारे लिए लिए श्रेयस्कर होगा, हितप्रद होगा।" पायासी-"काश्यप ! आपने जो पहला उदाहरण दिया, उससे ही मैं सन्तुष्ट हो गया था, प्रसन्न हो गया था, मेरा समाधान हो गया था, किन्तु, मैंने इन विचित्र, उद्बोधप्रद प्रश्नोत्तरों को सुनने की आकांक्षा से, तत्त्व को स्पष्ट रूप में समझने की भावना से, हृदयंगम करने की अभीप्सा से विपरीत बातें कहीं।' _ 'काश्यप ! बड़ा आश्चर्य है, अद्भुत बात है, जैसे कोई औंधे को सीधा कर दे, आवृत को उद्घाटित कर दे, उसी प्रकार आपने मेरी औंधी, उल्टी मान्यताओं को ठीक कर दिया है, मेरे ढके हुए ज्ञान को उद्घाटित किया है, अनेक प्रकार से धर्म का प्रकाशन किया है, आख्यान किया है। "काश्यप ! मैं भगवान् बुद्ध की शरण स्वीकार करता हूँ, धर्म की शरण स्वीकार करता हूँ, भिक्षु-संघ की शरण स्वीकार करता हूं, जीवन भर के लिए उपासक का धर्म अंगीकार करता हूँ। "काश्यप ! मैं एक महान् यज्ञ करना चाहता हूँ। आप मार्ग-दर्शन दें जिससे भविष्य में मेरा हित हो, कल्याण हो, मुझे सुख हो। "काश्यप ! जिस यज्ञ में गायों का वध होता है, भेड़ें और बकरियाँ मारी जाती हैं, मुर्गे और अर काटे जाते हैं, उसके निष्पादन करने वाले मिथ्या दृष्टि, मिथ्या संकल्प, मिथ्यावाक्, मिथ्या कमन्ति, मिथ्या आजीव, मिथ्या व्यायाम, मिथ्या स्मृति तथा मिथ्या समाधियुक्त हैं। इस प्रकार के यज्ञ का उत्तम फल नहीं होता, उससे उत्तम लाभ प्राप्त नहीं होता और न उत्तम गौरव ही उससे प्राप्त होता है।" "राजन्य ! जैसे एक किसान हल के साथ, बीज के साथ वन-प्रान्तर में प्रवेश करे। अनुपयोगी खेत में, ऊसर जमीन में, बालुका पूर्ण, कंटकपूर्ण स्थान में सड़े हुए, शुष्क, निःसार, उगने की शक्ति से रहित बीज बोए। ठीक समय पर वर्षा भी पर्याप्त न हो तो क्या वे बीज उगेंगे, पौधों के रूप में बढ़ेंगे, विस्तार पायेंगे ? क्या किसान को उत्तम फल प्राप्त होगा?" "पायासी-"काश्यप ! ऐसा नहीं होगा।" काश्यप-"राजन्य ! इसी भाँति जिस यज्ञ में गायों का वध होता है, भेड़ें, और बकरियाँ मारी जाती हैं, मुर्गे और सूअर काटे जाते हैं, उस यज्ञ का उत्तम लाभ प्राप्त नहीं होता और न उत्तम गौरव ही उससे मिलता है। "राजन्य ! जैसे कोई किसान उपयोगी खेत में, उर्वर भूमि में, बालुका रहित, कंटकरहित स्थान में अखण्डित, उत्तम, अशुष्क, सारयुक्त, शीघ्र उगने योग्य बीज बोए, ठीक समय पर यथेष्ट वर्षा हो जाए तो क्या वे बीज उगेंगे, बढ़गे, विस्तार प्राप्त करेंगे ?" पायासी-"हाँ, काश्यप ! यह सब होगा।" काश्यप-"इसी तरह जिस यज्ञ में गायों का वध नहीं होता, भेड़ें और बकरियां नहीं मारी जातीं, मुर्गे तथा सूअर नहीं काटे जाते, उस यज़ से उत्तम फल मिलता हैउत्तम लाभ प्राप्त होता है, एवं उत्तम गौरव मिलता है।" Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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