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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ तथारूप मांस बुद्धों के पारणा के लिए विहित है। टीकाकार ने बुद्ध शब्द को बुद्धों के अर्थ में ही ग्रहण किया है। इसका अर्थ यदि व्यक्तिगत गौतम बुद्ध से नहीं लेते हैं, तो कहा जा सकता है; जैन आगमों में कहीं भी गौतम बुद्ध की नामग्राह चर्चा नहीं है। गाथा २६ में सिणायगाणंस्नातक शब्द का प्रयोग हुआ है। टीकाकार ने उसका अर्थ बोधिसत्त्व किया है। किन्तु, यह हा जा सकता है। अन्यत्र टीकाकार ने भी इसका अर्थ नित्यं स्नायिनो ब्रह्मचारिणः स्नातकाः किया है। बुद्ध शब्द का प्रयोग जैसे बौद्धों की वक्तव्यता में हुआ है। वैसे आर्द्रककुमार ने भी शील-गुणोपपेत जैन मुनि को बुद्ध' कहा है। जीवन-परिचय महावीर और बुद्ध के जीवन-वृत्त तो पर्याप्त रूप में यत्र-तत्र मिल ही रहे हैं; शेष पाँच धर्म-नायकों के प्रामाणिक और पर्याप्त जीवन-वृत्त नहीं मिल रहे हैं। इसका कारण उनके सम्प्रदायों का लोप हो जाना है । आगमों और त्रिपिटकों में किन्हीं-किन्हीं धर्म-नायकों के जीवन-प्रसंग यत्किचित् रूप में मिलते हैं । १. पूरण कस्सप अनुभवों से परिपूर्ण मान कर लोग इन्हें पूर्ण कहते थे; ब्राह्मण थे; इसलिए काश्यप । वे नग्न रहते थे और उनके अस्सी हजार अनुयायी थे। एक बौद्ध किंवदन्ती के अनुसार ये एक प्रतिष्ठित गृहस्थ के पुत्र थे। एक दिन उनके स्वामी ने उन्हें द्वारपाल का काम सौंपा। उन्होंने इसे अपना अपमान समझा। वे विरक्त होकर अरण्य की ओर चल पड़े। मार्ग में चोरों ने इनके कपड़े छीन लिये। तब से वे नग्न ही रहने लगे। एक बार जब वे किसी ग्राम में गये, तो लोगों ने उन्हें पहनने के लिए वस्त्र दिये। उन्होंने यह कह कर वस्त्र लौटा दिये"वस्त्र का प्रयोजन लज्जा-निवारण है और लज्जा का मूल पापमय प्रवृत्ति है। मैं तो पापमय प्रवृत्ति से दूर हूँ; अत: मुझे वस्त्रों का क्या प्रयोजन ?" पूरण कस्सप की निस्पृहता और असंगता देखकर जनता उनकी अनुयायी होने लगी।२ ___ जैन आगम भगवती सूत्र शतक ३, उ० २ में पूरण तापस का विस्तृत वर्णन मिलता है । वह भी भगवान् महावीर का समसायिक था; पर, पूरण कस्सप के साथ उनकी कोई संगति हो, ऐसा नहीं लगता। परण कस्सप के निधन के सम्बन्ध में धम्मपद-अटकथा में एक बहत ही अदभुत तथा अस्वाभाविक-सा उदन्त मिलता है। वहां बताया गया है-राजगृह में तैथिकों व बुद्ध के बीच प्रातिहार्य (दिव्यशक्ति) प्रदर्शन का वातावरण बना। राजा बिम्बिसार के सम्मुख बुद्ध ने घोषणा की-मैं आगामी आषाढ़ पूर्णिमा को श्रावस्ती में प्रातिहार्य-प्रदर्शन करूँगा।" तैर्थिक १. निग्गंथधम्ममि इमं समाहिं, अस्सि सुठिच्चा अणिहे चरेज्जा। ___ बुद्धे मुणी सीलगुणोववेए, अच्चत्थतं (ओ) पाउणती सिलों॥ २. बौद्धपर्व (मराठी), प्र० १०, पृ० १२७; भगवती सूत्र, द्वितीय खण्ड, पृ० ५६, पं० बेचरदास द्वारा अनूदित व संशोधित। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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