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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ संस्व-पृथ्वी, जल, अग्नि व वायु के प्राणी । जीव का पर्यायवाची शब्द । सन्निवेश-उपनगर। सप्त सप्तमिक प्रतिमा-यह प्रतिमा उन्चास दिन तक होती है। इसमें सात-सात दिन के सप्तक होते हैं। पहले सप्तक में प्रतिदिन एक-एक दत्ति अन्न-पानी एवं क्रमश: सातवें सप्तक में प्रतिदिन सात-सात दत्ति अन्न-पानी के ग्रहण के साथ कायोत्सर्ग किमा जाता है । सप्रतिक-अनशन में उठना, बैठना, सोना, चलना आदि शारीरिक क्रियाओं का होना। यह क्रिया भक्त-प्रत्याख्यान अनशन में होती है। समय काल का सूक्ष्मतम अविभाज्य अंश । समवसरण -तीर्थङ्कर-परिषद अथवा वह स्थान जहाँ तीर्थङ्कर का उपदेश होता है . समाचारी–साधुओं की अवश्य करणीय क्रियाएँ व व्यवहार । समाधि वान-आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, शैक्ष, ग्लान, तपस्वी, मुनियों का आवश्यक कार्य सम्पादन कर उन्हें चैतसिक स्वास्थ्य का लाभ पहुँचाना । समाधि-मरण - श्रुत-चारित्र-धर्म में स्थित रहते हुए निर्मोह भाव में मृत्यु । समिति संयम के अनुकूल प्रवृत्ति को समिति कहते हैं, वे पाँच हैं -- १. ईर्या, २. भाषा, ३. एषणा, ४. आदान-निक्षेप और ५. उत्सर्ग । १. ईर्या-ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की अभिवृद्धि के निमित्त युग परिमाण भूमि को । देखते हुए तथा स्वाध्याय व इन्द्रियों के विषयों का वर्जन करते हुए चलना। २. भाषा-भाषा-दोषों का परिहार करते हुए, पाप-रहित एवं सत्य, हित, मित और असंदिग्ध बोलना। ३. एषणा गवेषणा, ग्रहण और ग्रास-सम्बन्धी एषणा के दोषों का वर्जन करते हुए आहार-पानी आदि औधिक उपधि और शय्या, पाट आदि औफ्नहिक उपधि का अन्वेषण । ४. आदान-निक्षेप-वस्त्र, पात्र आदि उपकरणों को सावधानी पूर्वक लेना व रखना। ५. उत्सर्ग-मल, मूत्र, खेल, \ क कफ आदि का विधिपूर्वक पूर्वदृष्ट एवं प्रमाणित निर्जीव भूमि पर विसर्जन करना। समुज्छिन्नक्रियानिवृत्ति-शुक्ल ध्यान का चतुर्थ चरण, जिसमें समस्त क्रियाओं का निरोध ___होता है। देखें,शुक्ल ध्यान । सम्यक्त्व-यथार्थ तत्त्व-श्रद्धा। सम्यक्त्वी-यथार्थ तत्त्व श्रद्धा से सम्पन्न । सम्यक् दृष्टि-पारमार्थिक पदार्थों पर यथार्थ श्रद्धा रखने वाला। सम्यग् वर्शन-सम्यक्त्व-यथार्थ तत्त्व-श्रद्धा। सर्वतोभद्र प्रतिमा-सर्वतोभद्र प्रतिमा की दो विधियों का उल्लेख मिलता है। एक विधि के अनुसार क्रमशः दशों दिशाओं की ओर अभिमुख होकर एक-एक अहोरात्र का Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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