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________________ ४५६ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ संयुक्त वस्तु नामक ग्रन्थ में परिनिर्वाण और संगीति का वर्णन एक साथ मिलता है। इससे यह यथार्थ माना जा सकता है कि उक्त दो प्रकरण महापरिनिव्वाण सुत्त के ही अङ्गरूप थे। इन आधारों से संगीति की वास्तविकता संदिग्ध नहीं मानी जा सकती, पर, उस संगीति के कार्यक्रम के विषय में अवश्य कुछ चिन्तनीय रह जाता है। उस संगीति में क्या-क्या संगहीत हआ, इस सम्बन्ध से विद्वत-समाज में अनेक धारणाएं हैं। प्रो० जी० सी० प कथनानुसार विनय पिटक व पिटक सुत्त का समन प्रणयन उस सीमित समय में हो सका, यह असम्भव है। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि विनय पिटक में दो संगीतियों की उल्लेख है, पर, तीसरी संगीति का नहीं; जिसका समय ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी माना जाता है। सम्राट अशोक का भी इसमें कोई वर्णन नहीं है, जो कि ई० पू० २६६ में राजगद्दी पर बैठे थे। अतः इससे पूर्व ही विनय पिटक का निर्माण हो चुका था, यह असंदिग्ध-सा रह जाता है। विनय पिटक का वर्तमान विस्तृत स्वरूप प्रो० जी० सी० पाण्डे के मतानुसार कम से कम पांच बार अभिवधित होकर ही बना है। निसीह सूत्र का रचना-काल महावीर के निर्माण-काल से १५० या १७५ वर्ष बाद के लगभग प्रमाणित होता है, जो कि ई० पू० ३७५ या ३५० का समय था। विनय पिटक का समय ई० पू० ३०० के लगभग का प्रमाणित होता है। तात्पर्य हुआ, दोनों ही ग्रन्थ ई० पू० चौथी शताब्दी के हैं। भाषा-विचार जैन आगमों की भाषा अर्धमागधी और बौद्ध त्रिपिटकों की भाषा पालि कही जाती है। दोनों ही भाषाओं का मूल मागधी है। किसी युग में यह प्रदेश विशेष की लोकभाषा थी। आज भी विहार की बोलियों में एक का नाम 'मगही' है। महावीर का जन्म-स्थान वैशाली (उत्तर क्षत्रिय कुण्डपुर) और बुद्ध का जन्म-स्थान लुम्बिनी था। दोनों स्थानों में सीधा अन्तर २५० मील का माना जाता है। आज भी दो स्थानों की बोली लगभग एक है। वैशाली की बोली पर कुछ मैथिली भाषा का और लुम्बिनी (नेपाल की तराई में रुमिनदेई' नाम का गाँव) की बोली पर अवधी भाषा का प्रभाव है। दोनों स्थानों की भाषा मुख्यतः ‘भोजपुरी' कही जाती है। आज मगही और भोजपुरी को विद्वान् प्राचीन मागधी की सन्तान मानते हैं। हो सकता है, महावीर और बुद्ध दोनों की मातृभाषा एक मागधी ही रही हो। जैन-शास्त्रकारों ने इसे अर्धमागधी कहा है। १. Studies in the Origins of Buddhism, p. 10. २. Edward J. Thomas, History of Buddhist Thought, p. 10. ३. Studies in the Origins of Buddhism, p. 16. ४. (क) भगवं च णं अद्धमागहीए भासाय धम्ममाइखइ। --समवायांग सूत्र, पृ०६० । (ख) तए णं समणे भगवं महावीरे कूणिअस्स रण्णो भिभिसारपुत्तस्स.. अद्धमागहए मासाय मासइ..सावि य णं अद्धमागहा मासा तेसिं सव्वेसिं आरियमणारियाणं अप्पणे सभासाए परिणामेणं परिणामइ...। -उववाई सुत्त । ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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