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________________ इतिहास और परम्परा] आचार-ग्रन्थ और आचार-संहिता ४५१ धारणाएँ चूणि और भाष्य में मिल रही हैं । विभिन्न अपेक्षाओं से हो सकता है, वे सभी सही हों। इस घटनात्मक इतिहास में किसी अपेक्षा से उसके कर्ता भद्रबाहु मान लिये गये हों और किसी अपेक्षा से विशाखाचार्य । ऐतिहासिक दृष्टिपात से णिसीह सूत्र का रचना-काल बहुत प्राक्तन प्रणाणित होला है। प्रो. दलसुख मालवणिया के मतानुसार यह भद्रबाहु कृत हो या विशाखाचार्य कृत, वीर निर्वाण से १५० या १७५ वर्षों के अन्तर्गत ही रचा जा चुका था। अस्तु, यह माना जा सकता है, यह ग्रन्थ अर्थागम रूप से २५०० वर्ष तथा सूत्रागम रूप से २३०० वर्ष प्राचीन है। णिसीह शब्द का अभिप्राय णिसीह शब्द का मूल आधार निसीह शब्द है। कुछ एक ग्रन्थकारों ने णिसिहिय, मिसीहिय और णिसेहिय नाम से इस आगम को अभिव्यक्त किया है तथा इसका सम्बन्ध संस्कृत के निषिधिका शब्द से जोड़ा है। इसका अभिप्राय होता है, निषेधक शास्त्र। यह व्याख्या मुख्यतः दिगम्बीय दिगम्बरीय षवला, जय धवला, गोम्मटसार टीका आदि ग्रन्थों की है। पश्चिमी विद्वान वेबर ने भी इसी अर्थ को मान्यता दी है। तत्त्वार्थ भाष्य में निसीह शब्द का संस्कृत रूप 'निशीथ' माना है। नियुक्तिकार ने भी यही अर्थ अभिप्रेत माना है। चूर्णिकार के मतानुसार निशीथ शब्द का अर्थ है-अप्रकाश आचार्य हेमचन्द्र कहते हैं : निशीथस्त्वर्धरात्रो अर्थात् निशीथ शब्द का अर्थ है-अर्थ रात्रि । सारांश यह हुआ एक परम्परा के अनुसार इस आगम का नाम है-निषेधक' तो एक मान्यत के अनुसार इसका नाम है-'अप्रकाश्य'। णिसीह सूत्र के अन्तर्गत जो विषय है. उस दोनों ही नामों की संगति बैठ सकती है। परिषद में इसका वाचन न किया जाये. इस चिर. मान्यता के अनुसार वह अप्रकाश्य ही है और इसमें अकरणीय कार्यों की तालिका है: अत: यह निषेधक भी है। फिर भी यथार्थ रूप में निषेधक आगम आयारंग को ही मानना चाहिए. जिसकी भाषा है—साधु ऐसा न करें। णिसीह की भाषा आदि से अन्त तक एक रूप है और वह यह कि साधु अमुक कार्य करे तो अमुक प्रकार का प्रायश्चित्त। इस दृष्टि से 'निषेधक' की अपेक्षा 'अप्रकाश्य' अर्थ १. निशीथ सूत्रम्, चतुर्थ भाग में 'निशीथ: एक अध्ययन, पृ० २५, प्र० सन्मतिज्ञानपीठ, आगरा, १६६०। २. The name (निसीह) is explained strangely enough by Nishitha though the character of the contents would lead us to expect Nishedha (निषेध)। -Indin Antiquary, Vol. 21, p. 97. ३. णिसीहमप्रकाशम् । -निशीथ चूणि, गा० ६८, १४८३ ४. मभिधान चिन्तामणि कोश (नाममाला), २-५६ । ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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