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________________ इतिहास और परम्परा ] काश्यप भिक्षु संघ और उसका विस्तार राजगृह में काश्यप गृहपति रहता था । उसने महावीर के पास साधु - व्रत ग्रहण किया । ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । घोर तप का अनुष्ठान किया । सोलह वर्षों तक साधु-पर्याय का निरतिचार पालन करते हुए विपुल पर्वत पर पादोपगमन अनशन पूर्वक मोक्ष प्राप्त किया। 2 स्कन्दक परिव्राजक राजगृह के गुणशिल चैत्य से प्रस्थान कर ग्रामानुग्राम विहरण करते हुए महावीर एक बार कयंगला आये । ईशानकोण स्थित छत्रपलाशक चैत्य में ठहरे । वहाँ भगवान् का समवशरण हुआ । कयंगला के निकट श्रावस्ती नगर था । वहाँ कात्यायन गोत्रीय गर्दभाल परिव्राजक का शिष्य स्कन्दक परिव्राजक रहता था । वह चारों वेद, इतिहास व निघण्टु का ज्ञाता था । षष्टितंत्र ( कापिलीय शास्त्र ) का विशारद था । गणितशास्त्र, शिक्षाशास्त्र, आचारशास्त्र, व्याकरणशास्त्र, छन्दशास्त्र, व्युत्पत्तिशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र तथा अन्य ब्राह्मण-नीति और दर्शन - शास्त्र में भी वह पारंगत था । उसी नगर में भगवान् महावीर का श्रावक पिंगल निर्ग्रन्थ रहता था | पिंगल एक दिन स्कन्दक के आश्रम की ओर जा निकला। उसके समीप जाकर उससे नाना प्रश्न पूछे। पिंगल ने कहा – “मागघ ! यह लोक सान्त है या अनन्त ? जीव सान्त है या अनन्त ? सिद्धि सान्त है या अनन्त ? सिद्ध सान्त है या अनन्त ? किस प्रकार का मरण पाकर जीव संसार को घटाता और बढ़ाता है ?" १८७ प्रश्न सुनते हो स्कन्दक शंकाशील हो गया । असमंजस में तैरता - डूबता रहा । उत्तर देने को ज्यों ही उद्यत होता, उसके मन में आता क्या उत्तर दूं? मेरे उत्तर से प्रश्नकर्ता सन्तुष्ट होगा या नहीं ? विचारमग्न स्कन्दक उत्तर न दे सका । वह मौन रहा। पिंगल ने साक्षेप अपने प्रश्न दो-तीन बार दुहराये । शंकित और कांक्षित स्कन्दक बोल न सका । उसे अपने पर अविश्वास हो गया था; अतः उसकी बुद्धि स्खलित हो गई । स्कन्दक ने जनता के मुंह से छत्रपलाशक में महावीर के आगमन का वृत्त सुना । मन में विचार आया, कितना सुन्दर हो, यदि मैं महावीर के पास जाऊँ और उपर्युक्त प्रश्नों का समाधान करूँ । संकल्प को सुदृढ़ कर वह परिव्राजकाश्रम में गया । त्रिदण्ड, कुण्डी, रूद्राक्ष - माला, मृत्पात्र, आसन, पात्र प्रमार्जन का वस्त्र खण्ड, त्रिकाष्टिका, अंकुश, कुश की मुद्रिका सदृश वस्तु, कलई का एक प्रकार का आभूषण, छत्र, उपानह, पादुका, गैरिक वस्त्र आदि यथास्थान धारण किये और कयंगला की ओर प्रस्थान किया । -" गौतम ! आज तुम अपने एक पूर्व भगवान् महावीर ने उसी समय गौतम से कहापरिचित को देखोगे ।" Jain Education International 2010_05 १. बौद्ध परम्परा में भी काश्यप नाम से एक महान् भिक्षु हुए हैं । वे प्रथम संगीति के कर्णधार रहे हैं । नाम साम्य के अतिरिक्त दोनों में कोई एकरूपता नहीं है । २. अन्तगडदसाओ, वर्ग ६ | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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