SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इतिहास और परम्परा ] एक अवलोकन xxi । उत्तरकालिक बौद्ध साहित्य ( अटुकथा आदि) में भी निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त के विषय में विविध चर्चाएँ हैं । बुद्ध की श्रेष्ठता और महावीर की अश्रेष्ठता बताने का तो उनका हार्द है ही, परन्तु निम्नस्तर के आपेक्ष व मनगढन्त घटना-प्रसंगों से भी चर्चाएँ भरी-पूरी हैं । जैन उत्तरकालिक साहित्य - नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि आदि - गन्थों में भी बुद्ध की अवगणना सूचक उल्लेख नहीं मिलते। यह जैन साधकों व बौद्ध साधकों के मानसिक धरातल के अन्तर का सूचक है । जैन साधक सम्प्रदाय-चिन्ता से भी अधिक आत्म-कल्याण को महत्त्व देते रहे हैं । ईस्वी सन् के आरम्भ से जब चर्चा युग का आरम्भ हुआ, तब तो जैन साधक भी बौद्धों के विषय में उसी धरातल से बोलने व लिखने लगे । उत्तरवर्ती टीका - साहित्य व कथासाहित्य इस बात की स्पष्ट सूचना देते हैं । इन्हीं पहलुओं पर मुनि श्री नगराजजी ने अपने ग्रन्थ में विस्तार से चर्चा की है । गवेषकों व जिज्ञासुओं के लिए वह माननीय है । ३-१२-६८ अनेकान्त विहार अहमदाबाद Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only - पण्डित सुखलाल संघवी www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy