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________________ xvi आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ समग्र-बौद्ध-साहित्य में ऐसे इक्कावन समुल्लेख प्राप्त होते हैं, जिनमें बत्तीस तो मूल त्रिपिटकों के हैं, मज्झिम निकाय में दश, दोघ निकाय में चार, अंगुत्तर निकाय व संयत्त निकाय में सात-सात, सुत्त निपात में दो एवं विनय पिटक में दो संदर्भ प्र हैं। इन समल्लेखों में विविध विषयों पर बुद्ध व निग्रंथों के बीच की चर्चाएँ, घटनाएँ व उल्लेख हैं। कुछ सन्दर्भो में आचार-विषयक चर्चा की गई है, जिनमें मुख्य रूप से निर्ग्रन्थों के चातुर्याम संवर का विषय है। प्राणातिपात, मृषावाद, चौर्य व अब्रह्मचर्य की निवृत्ति रूप चार याम बताये गये हैं तथा कहीं-कहीं कच्चे वारि व पापों की निवृत्ति के चार याम बताये गये हैं। एक सन्दर्भ में भाषा विवेक की चर्चा है, जिसमें दूसरों को अप्रिय लगे ऐसे वचन बुद्ध बोल सकते हैं या नहीं-यह प्रश्न उठाया गया है। मांसाहार की चर्चा में निर्ग्रन्थों द्वारा उद्दिष्ट मांस की निन्दा की गई है। एक प्रसंग में साधु के आचार व बाह्य वेष के सम्बन्ध में चर्चा है। भिक्षु के द्वारा प्रातिहार्य (दिव्य-शक्ति) का प्रदर्शन अकल्प्य बताने का प्रसंग भिक्ष के आचार-विषयक पहल पर प्रकाश डालता है। श्रावकों के आचार-विचार की चर्चा में उपोसथ-सम्बन्धी विवरण महत्त्वपूर्ण है। कुछ सन्दर्भ तत्त्व-चर्चा परक हैं। निर्ग्रन्थों की तपस्या और कर्मवाद' की चर्चा अनेक स्थलों पर की गई है, जिसमें तपस्या से कर्म-निर्जरा व दुख-नाश के सिद्धान्त की समीक्षा की गई है । दीर्घ तपस्वी निम्रन्थ व गृहपति उपालि के साथ बुद्ध की मनोदण्ड, वचनदण्ड १. प्रस्तुत ग्रन्थ के 'त्रिपिटक साहित्य में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त' प्रकरण में संगृहित किये गये है। दृष्टव्य, पृ० ३५४.४४८ । २. (क) संयुत्त निकाय, नाना तित्थिय सुत्त (प्रस्तुत ग्रन्थ के उक्त प्रकरण में प्रसंग संख्या ३१)। (ख) संयुत्त निकाय, कुल सुत्त (प्र० सं० ६)। (ग) अंगुत्तर निकाय, पंचक निपात (प्र० सं० ३६)। (घ) मज्झिम निकाय, उपालि सुत (प्र० सं० २)। ३. दीघ निकाय, सामञफल सुत्त (प्र० सं० २२)। - ४. मज्झिम निकाय, अभयराजकुमार सुत्त (प्र० सं० ३)। ५. विनय पिटक. महावग्ग, भैषज्य खन्धक (प्र० सं०१)। ६. संयुक्त निकाय, जटिल सुत्त (प्र० सं० ३३)। ७. विनय पिटक, चूलवग्ग, खुद्द कवत्थु खन्धक (प्र० सं० १८)। ८. अंगुत्तर निकाय, तिक निपात, (प्र० सं० २७)। ६. (क) मज्झिम निकाय, चूल दुक्खक्खन्ध सुत (प्र० सं०५)। (ख) अंगुत्तर निकाय, तिक निपात (प्र० सं० १०)। (ग) मज्झिम निकाय, देवदह सुत्त (प्र० सं०४) । (घ) अंगुत्तर निकाय, चतुक्क निपात (प्र० सं० १२)। (ङ) अंगुत्तर निकाय, चतुक्क निपात (प्र० सं० ३८)। १०. (क) मज्झिम निकाय, देवदह सुत्त (प्र० सं०४)। (ख) अंगुत्तर निकाय, चतुक्क निपात (प्र० सं० १२)। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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