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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ अन्त और नन्द-वंश का प्रारम्भ ई० पू० ४७४-३ में होता है। पुराणों के अनुसार शिशुनागवंश के १० राजाओं ने मगध में ३३३ वर्ष तक राज्य किया। तदनुसार शिशुनाग वंश का राज्यारम्भ-काल ई० पू० ८०७ में आता है। इस प्रकार मगध शिशुनाग वंश के १० राजाओं का राज्य-काल ई० पू० ८०७-४७४ है। इनमें से प्रथम पांच राजाओं का समय ई० पू० १. नन्द-वंश का राज्य मगध में ई०पू०४७४-३ में तथा अवन्ती में ई०पू० ४६७ में हुआ, इसकी पुष्टि ऐतिहासिक आधार पर भी होती है। यह एक सर्वमान्य ऐतिहासिक तथ्य है कि उस समय में मगध और अवन्ती के बीच काफी संघर्ष चल रहा था। इससे यह सम्भव लगता है कि प्रथम नन्द राजा ने मगध में अपना राज्य स्थापित करने के ६ या ७ वर्ष बाद अवन्ती का राज्य जीत लिया हो। यह तो सभी इतिहासकारों द्वारा निर्विवादतया माना जाता है कि नन्दों ने भारत में एकछत्र राज्य (एकराट| स्थापित किया था। द्रष्टव्य, Dr. H.C. Raychaudhuri, Political History of Ancient India, p. 234; Nilakantha Shastri, Age of Nandas and Mauryas, pp. 11-20. २. यहाँ यह ध्यान देना आवश्यक है कि यद्यपि पुराणों में शिशुनाग वंश का समग्र राज्य काल ३६२ वर्ष बताया गया है, फिर भी भिन्न-भिन्न राजाओं का जो राज्य-काल वहाँ दिया गया है, उसका योगफल ३३३ वर्ष होता है। द्रष्टव्य, वायु पुराण, अ. ६६, श्लो० ३१५-२१ ; महामहोपाध्याय विश्वेसरनाथ रेउ-भारत के प्राचीन राजवंश, खण्ड २, पृष्ठ ५४। ३. जैसा कि हम देख चुके हैं, शिशुनाग को भगवान् पार्श्वनाथ का समकालीन माना जाता है । पार्श्वनाथ का निर्वाण महावीर-निर्वाण से २५० वर्ष पूर्व हुआ था और उसकी समग्र आयु १०० वर्ष थी ; अतः पार्श्वनाथ का समय ई० पू० ८७७-ई० पू० ७७७ है (द्रष्टव्य, Political History of Ancient India, p.97) शिशुनाग का काल हमारी गणना के अनुसार ई० पू० ८०७-७४७ आता है। इस प्रकार शिशुनाग और भगवान् पार्श्वनाथ की समकालीनता पुष्ट हो जाती है। ४. हम देख चुके हैं कि डॉ० टी० एल० शाह के अनुसार शिशुनाग के बाद क्रमशः काक वर्ण, क्षेमवर्धन, क्षेमजित् और प्रसेनजित् राजा हुए। प्रसेनजित् का उल्लेख पुराणों में नहीं मिलता किन्तु जैन परम्परा में प्रसेनजित् को बिम्बिसार का पिता माना गया है। यह भी बताया जाता है कि प्रसेनजित् ने मगध की राजधानी कुस्थाल से हटाकर गिरिब्रज में बनाई (प्राचीन भारतवर्ष, खण्ड १)। प्रसेनजित् का उल्लेख बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान (पृ० ३६६ में शिशुनाग व काकवर्ण के वंशजों में आया है। देखें, Political History of Ancient India, p. 222. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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