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________________ इतिहास और परम्परा ] काल-निर्णय ४७ मिलता है। उनका कहना है : -"इससे यही प्रमाणित होता है कि महावीर बुद्ध के बाद कितने ही ( सम्भवत: ७ वर्ष) अधिक वर्ष जीवित रहे ।" " -: शास्त्र संग्राहकों ने तात्कालिक स्थितियों का कितना-कितना अंश शास्त्रों में संगृहीत किया, यह उसके चुनाव और उनकी अपेक्षाओं पर आधारित था । यदि ऐसा हुआ भी हो कि बौद्ध संग्राहकों की अपेक्षा जैन संग्राहकों ने कुछ अधिक या परिपूर्ण संकलन किया हो, तो भी इस बात का प्रमाण नहीं बन जाता कि महावीर बुद्ध के बाद भी कुछ वर्ष तक जीवित रहे थे, इसीलिए ऐसा हुआ है । डा० जेकोबी के मतानुसार यदि जैन आश्रम कोणिक-सम्बन्धी विवरणों पर अधिक प्रकाश डालते हैं, तो उसका यह स्वाभाविक और संगत कारण है कि कोणिक जैन-धर्म का वरिष्ठ अनुयायी रहा है । ' डा० जेकोबी ने तो अर्थान्तर से ही अनुमान बांधा है, जब कि बौद्ध शास्त्रों में 'बुद्ध से पूर्व महावीर का निर्वाण हुआ' ऐसे अनेक स्पष्ट और ज्वलन्त उल्लेख मिलते हैं और जैन आगमों में बुद्ध की मृत्यु का कहीं नामोल्लेख ही नहीं मिलता। ऐसी परिस्थिति में स्वाभाविक निष्कर्ष तो यह होता है कि जैन शास्त्र बुद्ध की मृत्यु के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं देते और बौद्ध शास्त्रों में 'भगवान् महावीर की मृत्यु भगवान् बुद्ध की मृत्यु से पूर्व हुई', ऐसा स्पष्ट उल्लेख देते हैं, तो महावीर पूर्व-निर्वाण प्राप्त और बुद्ध पश्चात् निर्वाण प्राप्त थे । डा० जेकोबी के लेख में सबसे लचीली बात तो यह है कि उन्होंने अपने दुरान्वयो अर्थ को सुस्थिर रखने के लिए महावीर के पूर्व निर्वाण सम्बन्धी बौद्ध शास्त्रों में मिलने वाले तीन प्रकरणों को अयथार्थ प्रमाणित करने का प्रयत्न किया है। उनका कहना है - ये प्रकरण भिन्न-भिन्न स्थानों में भिन्न-भिन्न प्रकार से मिलते हैं; अतः ये अयथार्थ हैं । साथ-साथ वे यह भी कहते हैं—इन तीनों प्रकरणों के भिन्न होते हुए भी तीनों का उद्देश्य तो एक ही है कि महावीर से निर्वाण-प्रसंग को लक्ष्य कर अपने भिक्षु संघ को एकता और प्रेम का संदेश देना । ध्यान देने की बात यह है कि उक्त तीनों प्रकरणों की भूमिका यत्किंचित् भिन्न भले ही हो, पर महावीर - निर्वाण के विषय में तीनों ही प्रकरण सर्वथा एक ही बात कहते हैं । भूमिकाएं शास्त्र संग्राहक किसी भी शैली से गढ़ सकते हैं, पर जीवित महावीर को भी वे निर्वाण प्राप्त महावीर कह सकते हैं, यह सोचना सर्वथा असंगत होगा । महावीर का निर्वाण किस पावा में ? डा० जेकोबी ने इस सम्बन्ध में एक अन्य तर्क भी उपस्थित किया है कि बौद्ध शास्त्रों महावीर का निर्वाण जिस पावा में कहा है, वह पावा शाक्य भूमि में थी और वहाँ बुद्ध ने अपने अन्तिम दिनों में प्रवास किया था ; जब कि जैनों की पारम्परिक मान्यता के अनुसार १. श्रवण, वर्ष १३, अंक ७ पृ० ३५ । २. विस्तार के लिए देखें, 'अनुयायी राजा' प्रकरण के अन्तर्गत, 'अजातशत्रु कूणिक ।' ३. इन तीनों प्रकरणों की विस्तृत समीक्षा के लिए देखें, इसी प्रकरण के अन्तर्गत 'निर्वाण प्रसंग' | Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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