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________________ ४७४ ] [ पट्टावली-पराग याधुनिक मन्दसौर का पूर्वकालीन नाम दशार्णपुर नहीं किन्तु 'दशपुर'' था, यह बात शायद जेठमलजी के स्मररण में से उतर गई है । हत्थारणापुर अर्थात् हस्तिनापुर दिल्ली नहीं, किन्तु वह कुरु जांगल देश की राजधानी स्वतंत्र नगरी थी और आज भी है । सौरीपुर आगरा नहीं किन्तु आगरा से भिन्न प्राचीन सौर्य्यपुर नगर का नाम है । वढ़वाण को अट्ठीगांव कहना भूल से भरा है, अस्थिकग्राम प्राचीन भारत के विदेह प्रदेश में था, पश्चिम भारत में नहीं । लाहौर के पास को रावी नदी इरावती नहीं, किन्तु कुणाल प्रदेश में बहने वाली इरावती नामक एक बड़ी नदी थी, इसी प्रकार मही नदी भी बड़ौदा के निकटवर्ती गुजरात की मही नहीं किन्तु दक्षिण कौशल की पहाड़ियों से निकलने वाली मही नदी को सूत्र में ग्रहण किया है जो गंगा की सहायक नदी है । "समकितसार” के लेखक श्री जेठमलजी के प्रमादपूर्ण उपर्युक्त पांच सात भूलों में हो "समकितसार" गत प्रज्ञान विलास की समाप्ति नहीं होती । यों तो सारी पुस्तक भूलों का खजाना है, प्रमाण के रूप में दिये गये संस्कृत प्राकृत ग्रवतररण इतनी भद्दी भूलों से भरे पड़े हैं जो देखते ही पुस्तक पढ़ने की श्रद्धा को हटा देते हैं और पुस्तक की भाषा तो किसी काम की नहीं रहीं, क्योंकि शब्द शब्द पर विषयगत ज्ञान और मुद्रण सम्बन्धी शुद्धियों को देखकर पढ़ने वाले का चित्त ग्लानि से उद्विग्नि हो जाता है । हमारे सामने जो " समकितसार" की पुस्तक उपस्थित है यह "समकितसार" की तृतोयावृत्ति के रूप में विक्रम सं० १९७३ में श्रमदाबाद में छपी हुई है, इसी "समकितसार" की सम्भवतः प्रथमावृत्ति विक्रम सं० १९३८ में निकली थी, इसकी द्वित्तीयावृत्ति कब निकली इसका हमें पता नहीं है और ७३ के बाद इसकी कितनी प्रावृत्तियां निकली यह भी साधनाभाव से कहना कठिन है । १९३८ की आवृत्ति निकलने के बाद इसके उत्तर में सं० १९४१ में “ सम्यक्त्व - शल्योद्धार" नामक पुस्तक पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज ने लिखकर प्रकाशित करवाई "समकितसार " Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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