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________________ सूरिविरचितः] श्रीमहावीरकलशः. (२६१) इगि आतपुवारणु सुमहिमकारणु धारंतउ जिणजम्ममहे सोहम्मसुराहिवु वरवसहाहिवु चउर विउव्वइ वरककुहे ॥२२॥ त उ ता हसिकं गिरितुंगह सिंगह निस्सरिअं रयजिअनिलं वरखीरसरिच्छा अच्छअतुच्छा गच्छहि धारा गयणयलिं । निवडंती सोहइ सुरगण मोहइ कयजिणजम्मणमहिमगुणा तं जाय सु तण्हा अडदिसि जुण्हा अहमहमिग विहिआगमणा२३ तउ नच्चइ अच्छर गच्छिरमच्छर नवनवरंगसुरंगभरे गुणगुमिरमृदंगिं ममरवसंगिं उल्लति उल्लति उल्लसिरे । गायति अ किनर वरस्सर सुरकयतारवितारह एव झुणी ___ वायंती वीणा वेणिपवीणा वंस सुवंसा आलविणी ॥२४॥ सुरतरुनिस्संदिणी हिमयरचंदिणी घुसृणिविलेविणु जिणधवले कंकणकंटुल्लय धडिवरघुल्लय हारविराइअवच्छयले । सुरकुसुमह माला मउलि विसाला आलइ आलइ उंतिअले सहजललवणत्तिगु किउ आरत्तिगु मंगलिक्कु मंगलनिलए ॥२५॥ पडिबिंबवसोअणि विज्जवहराणि मिल्लिवि जिणजणणिपासि जिणं तह मणिलंबूसय कुंडलदूसइजुअल्लु जिणंते पक्रगुणं । जिणजणणीरक्खं सुरपञ्चक्खं उग्धोसाविय तत्थ गओ नंदीसरमहिमा विहिउ सुहम्माहिवु सक्कि हिंसिउ सग्गि गओ॥२६॥ विहिअमजण विहिअमजणमहिम सुरवरिहिं जिम सुरगिरिसिरउरि वीरजिणह सुरगिरिसुधीरह । तिम तुम्हिवि भबिअजण ! कुणह इत्थ तेलुककीरह
SR No.002613
Book TitleJainstotrasandohe Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1932
Total Pages662
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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