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________________ ५०७ ५०७ २२२५ ] नवमभवि वसुदेववुत्तंतु [२२२२] कमिण जायउं तीए सुय-रयणु नामं च विइन्नु तसु जरकुमार इय जगि पसिद्धउं । वसुदेविण पुणु भुवण- भरण-दक्खु जसु पउरु लद्धउं ॥ अह अवंतिसुंदरि तयणु सूरसेण हरिणच्छि । ता निव-कन्नय जीवजस वीवाहेइ मयच्छि ॥ [२२२३] एम्व वहुविह-सेटि-सत्थाहसामंत-नराहिवइ- खयरराय-कन्नय-सहस्सई । परिणंतु अरिहपुरि पत्तु दिसिहि भामिरु स-जस्सई ॥ तत्थ य तइयहं आसि सिरि- रुहिर-नामु नर-राउ । तस्स उ मित्ता नाम पिय तेसिं पुणु संजाउ । [२२२४] सुकय-जोगिण सुउ हिरण्णाभअभिहाणिण विस्सुयउ तह अणेग-गुण-रयण-धरणिय ।। नीसेस-कला-कुसल रोहिणि त्ति अभिहाण कुमरिय ॥ कयइ सयंवर-मंडवइ •तसु कुमरिहि पाउग्गि । मिलियइ सिरि-जरसंध-निव- पमुहि नराहिव-वग्गि ॥ [२२२५] गुरु-कुऊहल-वसिण कय-रूव परिचत्तु आउज्जियहं मज्झि होउ करि पणवु घेप्पिणु । जा वायइ सउरि वहु- विहिहिं सुरहमवि मणु गहेप्पिणु ॥ ता तत्थागय रंभ-रइ- लच्छिहिं सोह हरंत । सा रोहिणि कन्नय वि दिह- सहि-विदिण सोहंत ॥ २२२५. ७. ख सियह. ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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