SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९३ २१६४ ] नवमभवि वसुदेववृत्तंतु [२१६१] अह ललंतउ तीइ सह सुइरु अइवाहइ वासरई अवर-समइ रयणिहिं हरेविणु । परिखित्तु अगाह-जलि सुर-नईए गयणिण निएविणु ॥ विहिहि निओएण उ पडिउ खंध-देसि खयरस्सु । विज्ज-सिद्धि-कइ तहिं गयहं चंडवेग-नामस्सु ॥ [२१६२] तयणु तुट्टिण तेण खयरेण संलत्तउं - सप्पुरिस सिद्ध विज्ज मह तुह पहाविण । इय मग्गसु दुल्लहु वि जेण देमि तुह अइर-कालिण ॥ ता वसुदेविण तसु सविहि नहयल-गामिणि विज्ज । गहिवि निवेइय-विहिहिं लहु साहिय कय-वहु-कज्ज ॥ [२१६३] एत्थ-अंतरि दिव्व-आहरणदेवंगिय-वत्थ-वर- रूव-पढम-जोव्वणिहिं चंगिय । ससि-विमल-कला-निलय पयडिहूय तसु इग नयंगिय ॥ तीइ हरिवि जायव-तिलउ सिरि-वेयड्ढ-नगम्मि । अहरिय-अमरावइ-विहवि अमियधार-नयरम्मि ॥ [२१६४] नीउ अह तसु करिवि पडिवत्ति सिरि-दहिमुह-नामगिण नहयरेण स जि नियय-भइणिय । संखेविण दिन्न अह सउरिणा वि सा तरुणि परिणिय ।। पत्तावसरिण पुणु पुरउ तमु जंपिउ खयरेण । जह विन्नती सुणसु मह पसिउण एग-मणेण ॥ ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy