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________________ ४८२ [ २११७ नेमिनाहचरिउ [२११७] जाव ता तहिं विहिय-दिय-वेसु सच्चवियउ वहु-कवडु इंदसम्मु दहु इंदयालिउ । वसुदेविण तमु पुरउ गहिउ मंत-तंतोहु अणलिउ ॥ किं पुण निसिहं चडाविउण गुरु-विमाणि वसुदेवु । अवहरियउ नहयल-पहिण किं तु सु अ-कय-क्खेवु ।। [२११८] तसु विमाणह उत्तरेऊण तह कह-वि गयउ जह इंदसम्म-धुत्तिण वि न मुणिउ । तिलसोसय-नामि पुणु सन्निवेसि निय-सुकय-उवणिउ ॥ आगंतूण पुरह वहिहिं देवउलम्मि पसुत्तु । चिट्ठइ रयणिहिं नर-रयणु सो सुहि-सयण-विउत्तु ॥ [२११९] एत्थ-अंतरि कणयपुर-सामि जियसत्तु-नराहिविण नियय-पुत्तु नर-मंस-लुद्धउ । निद्धाडिउ निय-पुरह स-विसए वि पविसिरु निसिद्धउ ॥ सो य भमंतउ नग-नगर- गामाउल-वसुहाए । वावायंतु अणाह वहु माणुस मंसासाए॥ [२१२०] विहि-निओइण रयणि-मज्झम्मि मंसासण-लुद्ध-मण- पसरु पत्तु वसुदेव सविहिहिं । आयइढिवि असि-लइय जा पहारु तसु देइ अ-विहिहिं ॥ ता वसुदेविण उद्विउण केस-कलावि गहे वि । पावु सु पंचत्तह नियउ निय-खग्गिण निहणेवि २११७. ९. क. कितु. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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