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________________ [ १९९४ नेमिनाहचरिउ [१९९४] इय सुणेविणु दह्रमवि कंसवुत्तंतु स-तोस-मण समुदविजय-निव-पमुह जायव । अन्नोन्निण भणहिं जह सलहणिज्जु पिउ जणणि भाय व ॥ ते च्चिय हरिवंसुब्भविय जहिं सिरि-कंस-सरिच्छ । जायहिं ससहर-विमल-गुण-रयणावलि-पडिहच्छ ॥ [१९९५] ___ कहिं व उज्झिवि वंसु जायवहं सुय-रयण कंसह सरिस होंति भुवण-असमाण-वीरिय । इय भणिउण सीहरहु गहिवि पुरउ कंसह करा विय ॥ सिरि-जरसंधह वियरिउण समुदविजउ साहेइ । जह - जय-सहु कु एरिसउ पागय-पुरिसु वहेइ ॥ [१९९६ उग्गसेणह निवह तणएण एएण कंसाभिहिण गहिउ सीहरहु समर-धरणिहिं । वंधेउण निय-करिहिं तयणु जीवजस-पवर-तरुणिहि ॥ पाणि गहाविउ वित्थरिण जरसंघेण सु कंसु । तह जंपिउ जह-कंस तुहुं इच्छिउ पुरु मग्गेसु ॥ [१९९७] तयणु जणणी-जणय-उवरिम्भि परिओसु वहतिइण महुर-नयरि कंसेण मग्गिय । इयरेण वि विसय-जुय सा विइण्ण तमु ता निसग्गिय ॥ उज्जालंतउ वेर-मइ कंस-हयासु सु गंतु । महुरहं नयरिहिं पिउ-जणणि वंधेऊण तुरंतु ॥ १९९६. ९. क. पुर. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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