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________________ ६४२ रिउ गहिय-असेस - सिरिलक्कडियहं लग्गिउण खंड-हत्थिण माणविण ता महावि मुक्कु मई [ २८७६] समर - निवडिय -सयल - सुहि-सयणु परिजंपिरु मरिसि धुवु दिव्वाउह मुक्क वहुता निट्ठिय- आउहु मगह - कालव निय धणु-रयणु नेमिनाहचरिउ [२८७७] अरिरि वालिस तुर्ह अ-संवद्ध Jain Education International 2010_05 रह-रह मज्झ लहु रि-वग्ग-विणासयरु दूरिण अहरिय - तिमिर भरु चक्क रयणु संपत्तु अह लज्जमाणु परिहरिवि अज्ज-वि । सुहिण अच्छि तुंग तुहुं स घरि वि ॥ किं वोल्लाविण । गच्छहि रहिउ भएण ॥ [२८७८] भणइ पुणु - धिसि मज्झ सामत्थु किमु रज्जेण वि इमिण जं नाणाविह- समरगोपय-मिति इमम्मि रणि अEE निवोलिङ तेम्व जिम्व २८७६. ५. तुहुं तुहु. २८७९. ५. क. सुंदर. इय भणेवि जरसंघ - निविण वि । भेय ताईं पsिहणिय हरिण वि ।। सामि विसायावन्तु । चयइ पयट्ट - अवन्नु || [२८७९] इ स - खेयह मगह - नाहस्सु हा धिरत्थु मह सुहड - वाह | जलनिहिस्सु हउं गउ वि पारह ॥ गोवाणि एएण । उज्झिस्सामि जिण ॥ पत्त - उदय-रवि- विंव भासुरु | सुर - विइन्न- माहप्प- सुंदरु ॥ चिर-कय-मुह-सय-लब्भु । महाविर पगब्भु ॥ [ २८७६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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