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________________ ६१२ नेमिनाहचरिउ [ २७३३ [२७३३] ___ हरि वि पभणइ जंववइ-सविहि नणु सुयणु तुहंगरुहु न मुह-सीलु ता सिक्खविज्जसु । इयरी वि भणेइ - मह तणउ अहिउ मुणिहिं वि मुणिज्जसु ॥ तयणु परिक्खह हेउ तसु हरि आहीरत्तेण । आहीरी-रूवेण पुणु जंववइ वि सह तेण ॥ [२७३४] गोस-अवसरि तक्क-दहि-दुद्धभंडाई गहेउ सिरि- वारवइहि मज्झम्मि पविसई । जा ताव संवेण - नणु एहि एहि किर णेमि एयई ॥ इय जंपतिण करि धरिवि देवउलह मज्झम्मि । हढिण पवेसिय मयहरिय ता गय-संक मणम्मि ॥ [२७३५] ईसि विहसिवि जंववइ-रूवु अवलंवइ मयहरु वि धरइ रूवु केसवह अइरिण । संवो वि लज्जिरु गयउ पिहिय-वयणु वत्थेग-देसिण ॥ लज्जावसिण य हरिहि निय- मुहु दंसेउमसत्तु । अत्थाणम्मि न पविसरइ जंववइहि सो पुत्तु ॥ [२७३६] अवर-वासरि कह-वि पज्जुन्नउवरोहिण आगयउ खयर-कीलु घडमाणु छुरियहं । ता पुच्छिउ हरिण - नणु किं करेसि खायर-सलायहं ॥ अह लहु संवु समुल्लवइ जो वासिउ भणिहेइ । तहि मुहि जंववईए सुउ इहु कीलउ खिविहेइ ॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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