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________________ २६२१ ] नवमभत्रि रुप्पिणिहरणु [२६१८] तयणु रोसिण धमधमेमाणु उप्पइउण नहयलिण कुंडिणीए नयरीए पत्तउ । तहिं भीसम-नामु निवु आसि रज्ज-सुह-अमय-सित्तउ ॥ तसु सुउ रुप्पी-मामु निवु धूय वि रुप्पिणि-नाम । विमल-कलालय असम-गुण- गण-रयणावलि-धाम ॥ [२६१९] तीए ससहर-मुहिहि भवणम्मि जा नारउ आगयउ उवरि ताव दूरह वि उढिवि । कय-आयरु संभमिण एहि एहि भयवं ति पभणिवि ।। वियरइ सीहासणु पवरु तहिं उवविट्ठइ तम्मि । कय-सक्कारु समुल्लवइ रुप्पिणि जह - धरणिम्मि ॥ [२६२०] परिभमंतिण कह-वि सच्चविउ कोऊहलु किं-पि तई ता भणेइ नारउ - सुलोयणि । पणयागय-कप्पतरु खल-कुढारु नय-पहिय-दिनमणि ॥ सोहग्गिय-तरुणहं तिलउ निहणिय-माणिणि-माणु । वारवइहिं मई सच्चविउ कोउगु हरि-अभिहाणु ॥ [२६२१] ___ तयणु रुप्पिणि भणइ -दंसेसु मह कह-वि त नर-रयणु अह सु झत्ति वर-वन्न-दप्पिउ । सह आणिउ चित्त-पडु रूप्पिणीए नारइण अप्पिउ ॥ इयरी वि-हु अणिमिस-नयण पडउ सु जा पेक्खेइ । ता मयणिण डझंत-तणु अप्पु वि न-वि लक्खेइ ॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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