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________________ ५३६ नेमिनाहचरिउ [ २३५९ [२३५९] खणिण संपत्तु जिण-भवणि आखंडलो विहिय-जिण-जणणि-अइपवर थुइ-मंगलो। ठविवि पडि विंचु दाऊग असोयणिं गिहए जिणवरं भुवण-चिंतामणिं ॥ [२३६० इय करयलि ठाविवि मणि परिभाविवि जिणु अणंत-गुणु भत्ति-भरि । कय-पंचहिं रूविहिं पवर-सरूविहिं नेइ सक्कु सुरगिरि-सिहरि ॥* [२३६१] (१७) पंडु-सिलायलि खीर-समुज्जलि कय-कुसुमुक्करि गय-रय-निम्मलि । फार-फुरंत-रयण-सीहासणि सक्कि निलीणि अंक-संठिय-जिणि ॥ [२३६२] आसण-कंप-मुणिय-जिण-जम्मण ईसाणिंद-पमुह हरिसिय-भण । आगय सयल वि तत्थ सुरेसर ठिय निय-निय-सुरयण-अग्गेसर ॥ [२३६३] जोइस-वंतर-भवण-निवासिय आगय सुर असंख तहिं हरिसिय । धरहिं के-वि जिणवर-सिरि छत्तई ढालहिं चमर के-वि सु-पयत्तई ॥ [२३६४] धृव-कडच्छुय-बावड केइ-वि के-वि सुराहिव दप्पणु लेइवि । ठंति जिर्णिदह अग्ग इ मुह-मण अण्णि पढंति सजल-घण-निस्सण ॥ [२३६५] गायहिं के-वि तियस कि-वि नच्चहि के-वि सरसु कुसुमुक्कुरु 'मुच्चहि । करहिं के-वि गलगज्जिउ वंधुर तह हय-हेसिउ रव-भरियंवरु ॥ *ग्रंथानं ६००० २३६१. ४. निलीणिं; क. जिणिं, ख. जणि. २३६४. * The portion from °इ (2364. 3.) to पो (2372.. 1.) is based on ms. a. only. ___ २३६५. १. कि निवहिं. २. मुवहिं. ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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