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________________ पढमभवि धणवुत्तंतु [१०३] इय मुणेविणु सुहय कारुणिय समय-ष्णुय सिरि-तिलय रायहंस पण इ-यण - वच्छल । जं जुत्तरं तं कुणसु अह विहिय- मणु धणकुमरु परिचित परमत्थु मणि १०६ ] सयल भुवण-मण- मुणण-पच्चल ॥ उभय-भाव- दंसीण । वत्थु कव्व-हंसीण | [१०४] कट कइतह किंपि कुसलत्तु ay गहिरिम जंपियहं हुं हुं रेहहं सुद्धिक वि अहह भाव-विन्नासु चित्तहं । अरि हियय-हारिम ललित्तह || कट कट वन्न विछित्ति एह वपु वपु भूमिय-कम्मु । अह अह कर पल्लव- लहिम अरि अरि तिउ अभिरम् || परफुल्ल त्रयणं बुरुहू विक्कमघण- अंगरुहु सायरु कय-सक्कार - विहि लेहु समप्प चित्तग Jain Education International 2010_05 [१०५] इय विर्चितिरु निरु धुणिय-सीसु लिहिय- नियय-करयलिण तक्खणि । पत्त- कित्ति नव-कव्व - लक्खणि ॥ सह निम्मल - हारेण । मंति-हत्थि स-करेण ॥ [१०६] अह पसाहिय-सयल - निय-कज्जु सचिवाहिg चित्तग कुमर-धरणिनाहिहिं अणुण्णिउ । संपत्तउ कुसुमपुरनयरि नियय परियण-समन्निउ || ता सीह निवsहि पुरउ सिरि विरइय-कर-कोसु । कय-गरुय-पडिवत्ति-विहि सचिवाहिवइ सन्तोस || १०४, ८. क. लहि; पल्लधव, ९. अरि पत्तिउ. For Private & Personal Use Only २७ www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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