SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [१३४४ ३३४ नेमिनाहचरिउ (६) [१३४४] एत्तो उ पच्छिम-दिणे जिण-समय-विसारएण एगेण । सु-स्सावगेण कहिया महासि (?) रइसुंदरीए कहा ॥१॥ [१३४५] सा उण इम त्ति अबहिय-हियया होउं सुणेह मह पसिउं । नणु कहसु कहसु इय भणिरम्मि कुमारे वयइ इयरो ॥२॥ तहा हि[१३४६] उज्जेणीए पुरोए अहेसि गिरि-मेहल ब वहु-कूडा । वहु-लोहा य तुला इव परमक्का मयरट्ट त्ति ॥३॥ [१३४७] तए य जय-नियंविणि-समहिय-लायण्ण-रूव-सिंगारा । रइसुंदरि त्ति अभिहाण-विस्सुया आसि दुहिय त्ति ॥४॥ [१३४८] सा उण करिवर-मुल्लं विणा न गेण्हेइ पुरिस-गरहणयं । वीय-दिणम्मि य सेवइ न मयण-सरिसं पि तं पि नरं ॥५॥ [१३४९] निय-चंगिम-गव्वेण य लीहं पि न देइ इयर-गणियाणं । एवं च तीए वहतीए वच्चंति दियहाई ॥६॥ [१३५०] अन्न-दिणे वेसमणो मयणो य दुवे वि नंदण-वणम्मि । गंतूण कयाणंदा बहुहा कीलेउमाढत्ता ॥७॥ [१३५१] एत्तो य तेसि पुरओ भणियं एगेण सुर-विसेसेण । नणु रइसुंदरिमुज्झिय किमियर-कीलाहिं तुम्हाण ॥८॥ [१३५२] किं तु न सा निय-महिमा-अवहत्थिय-तियस-तरुणि-मुंदेरा । तियसाहिवं पि सेविय-पुव्वं सेवेइ वीय-दिणे ॥९॥ [१३५३] करिवर-मुल्लं च विणा गरहणयस्स वि न ओड्डए हत्थं । चिट्ठइ य इमा उज्जेणीए नयरीए वर-गणिया ॥१०॥ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy