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________________ ४४८ ऐतिहासिक जैन काब्य-संग्रह परत परत्र तली पधरावा ३५१ स्थापित क- परणालियां १३० प्रणाली, पररता है नाले पभई ४०४ कहता है ३७६ पड़ती हुई पभणेसो ३१२ कहूंगा परत्थी २४ परस्त्री पमुह १,११८,४०२ प्रमुख, आदि ३६७ परलोकमें पमुहाणं १ पमुखानां पखाली ८१ पखाली, पानी पमोउ २२ प्रमोद भरनेवाला पयड १,२,१५,३१, परषद ७ परिषद ५१,२१५,३६५, परि,पर ४१४,४०८ भांति, तरह ४०१, प्रकट परिकर ३३८ परिवार पयडिय ३१२ प्रकृति परिक्खिवि ३६६ परिषदि पयंडिहि . ३५ पांडित्यसे पग्रिह २७७ धन,वस्तु सञ्चय पयतलि ३७,६३ पदतल, पग परिघल ३४७ खब परिणिति ३३० प्रवृत्ति पयन्ना (दप) १८३ प्रकरण १० परिवर्या २९९,३३६ परिवेष्ठित, पयार ३९१,३९३ प्रकार परिवार सहित पयावि ३६५ प्रतापी, प्रजा | परिहरवि १ छोड़कर । पति परुप्परु ३६७ परस्पर, अ६,३६ प्रकाशित न्योन्य करता है ४१३ भांति पयासणु ३८५ प्रकाशन । पल्योपम २९१ ३५६ कालका प्रमाण करनेवाला विशेष । पल्हभ(?)णु ३६८ पल्हकवि पयासिउ २ प्रकाशित किया कहता है पयंडु ३८५ प्रचण्ड पवज्जति १६४ प्रवर्त्त होते हैं परगडा९७,२९६,३६१ प्रधान, पव(य) द्वरत्ति ३१ रात्रिको प्रतिष्ठा चतुर, कुशल पवतणि ३३९ प्रवर्तिनी १४१ अन्यगछीय (पदविशेष) परघल १०० खूब ३६९ प्रवर पयासह पवर Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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