SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 603
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१० ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह बहु खरच कीया दान दीया, विविध लखमी वावरी । 'संखवाल' साचा विरुद खाटै, धर्मराग हीये धरी ॥ 'सैत्रुज' संघ कराय साथै, संघ सहुको भ्रम धवै ॥ २ की० ॥ 'संखैसरे' 'गिरनार' 'गोड़ी', देस 'सोरठ' संचरी । चितलाय चैत्यप्रवाडी कीधी, लाहिणां जिहां तिहां करी । घर आय घणा घमंड सेती, संघ पूज करी लवै ॥ ३॥की ० || आचारजां सुं अरज करिने, चतुरमासक राखिया । गोत्रजा कुलगुरु दूर कीधा, भेद आगम भाखिया । समझावीया सिद्धांत सुवचन, वांणि जांणी अमी श्रवै ||४| की 'मालवै' 'थट्टा' 'सिंध' सनमुख, 'संखवाल (चा) ' मत जावजो । पाट भगत हुइज्यो सुगुरु भाख्यो, गच्छ—-फाट में नावजो । दीक्षा न लेज्यो, संघ पद पिण, हलद्र ओषद (ध?) मत खवै | |५| की० || 'कोरटै ' 'जेसलमेर' देहरा, कराविजो गुरु इम भणै । नगर चोहटा थकी जिमणै, पास वसज्यो धन घणै । सीख सात मानै साह सहुको, सुखी हुइ इह परभवै || ६|की ० || पंचास एक शिष्य पंडित, 'कीरतिरतनसूरि'नं । गुरु गुणे गौतम ज़ेम गिणियै, जुगति सुमति जगीसनै । वासक्षेप जेहने सीस उपरि, करै तसु दालिद गमै ||७ की २ || कलस — आऊखा नै अंतपक्ष, अणसण पाली नै, संवत 'पनरपचीस ', मन वैराग वाली नै । 'वैसाख सुदी पंचमी', सुगुरु सुरलोक सिधाहे । अण कीधे उद्योत हुवो, जिनभवनत मांहे । सुखकार सार शृंगार मणि, “सुमतिरंग" सानिध सदा । रखवाल वाल गोपाल कूं, वाट घाट यदा तदा ||८|| Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy