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________________ श्री गुर्वावली फाग (१) श्री गुर्वावली फाग २१५ प्रणमति केवल लच्छि वरं, चडवीसमड जिणंदो । गाइसु 'खरतर' जुग पवर, आणिसु मनि आणंदो ||१|| अहे पहिलउ जुगवर जगि जयउ ए, श्री 'सोहमसामि' । वीर जिणंदह तणइ पाटि, सो शिवपुर गामी ॥ मोह महाभड तणउ माण, हेलि निरदलीयउ । 'जंबूस्वामी' सुस्वामि साल, केवलसिरि कलीयउ ||२|| सुयकेवलि सिरि 'प्रभवसूरि', 'सिज्जंभव' गणहर । दस पूर्वधर 'वरस्वामि', तयणुक्कमि मुणिवर ॥ तसु वंशि दियर जिसउए, तव तेय फुरन्तु । सिरि 'उज्जोयणसूरि' भूरि, गुण गणहिं वदीत ॥३॥ 'आबूयगिरि' सिहरि जेण, तप कीयउ छम्मासी । पयड़ीकय सिरि सूरि मंत्र, तसु महिम पयासी ॥ 'पउमावइ' 'धरणिन्द' जासु, पय क (य) मल नमंसिय । नंदउसो सिर 'वद्धमाण', मुणि लोय पसंसिय ||४|| भास 'अणहिलपुर ' मढ़पत्ति (जीपी) जेण, थापी मुणिवर वासो । रायंगण 'दुल्लह' ताई, पामी विरुद पयासो ॥५॥ अहे 'खरतर विरुद' पयासु जा (सु), दीघउ चउसालो । निर्मल संयम गुणहि जासु, रंजिय भूपालो ॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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