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________________ XXVI "प्रस्तुत चित्रसे बीजा जिनेश्वरसूरिके जेओ श्री जिनपति सूरिना शिष्य हता, तेओनो होय एम लागे छ । श्रीजिनेश्वरसूरि सिंहासन उपर बेठेलाछे तेओना जमणा हाथ मां मुहपति छे अने डाबो हाथ अभय मुद्राए छ । जमणी बाजुनो तेओश्रीनो खभो खुलो छ। ऊपरना छतनां भागमां चंदरवो बांधेलो छे सिंहासन नी पाछल एक शिष्य उभो छे अने तेओनी सन्मुख एक शिष्य वाचना लेतो बेठो छ । चित्रनी जमणीबाजूए एक भक्त श्रावक बे हाथनी अंजलि जोड़ीने गुरुमहाराजनो उपदेश सांभलतो होय एम लागे छ। ६-योगविधि पत्र १३ की प्रति (सं० १५११ लि०)के अन्तिम पत्रसे ब्लाक बनाया गया है । प्रशस्ति इस प्रकार है:- वत् १५११ वर्ष अषाढ़ वदी १४ चतुर्दश्यां बुधे श्री खरतर गच्छेश श्री श्री जिनभद्र सूरिभिलिखितमिदं ॥१॥ वा० साधुतिलक गणिभ्यो वाचनाय प्रसादी कृतेयं प्रति । - जिनचन्द्रसूरि मूर्तिः-बीकानेरके ऋषभ जिनालयमें युगप्रधान आचार्यश्रीकी सं० १६८६ जिनराजसूरि प्रतिष्ठित मूर्ति है उसीका यह ब्लोक हैं, लेख नकल देखें-युग प्रधान जिन चन्द्रसूरि पृ० १५७।५८ । ८-जिनचंदसूरि हस्तलिपि :-स्व० बाबू पूरणचन्द्रजी नाहरके संग्रह (गुलाब कुमारी लाइब्ररी) को नः ११८ कर्मस्तववृत्तिकी प्रतिसे ब्लाक बनवाया गया है, पुस्तिका लेख इस प्रकार है: संवत् १६११ वर्षे श्री जेसलमेरू महादुर्गे । राउल श्री Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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