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________________ १४२ . ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह तपला रिष तुं सोचावई, इहां पद्मसुंदर नहीं आवई । करिस्यां पातिसाह हजूर, खरतर घरि वाज्या तूर ॥२१॥ मिगसर बदी छट्ठ प्रभातई, मिलिआ पातिसाह संघातई । वाइमल्ल बोलायउं पिछाणी, साहि बात सहु गुदराणी ॥२३॥ आणंदइ खरतर माल्हई, कविराज कई की आहवालई । निज २ थानक सवि आया, विहाणई कविराज बुलाया ॥२३॥ अनिरुद्ध महादे मिश्र, मिलिया तिह भट्ट सहश्र । साधुकीर्ति संस्कृत भाखड़, बुधिसागर स्युं स्युं दाखई ॥२४॥ पंडित कहइ मूढ गमार, तेरो नाम छै बुद्धि कुठार । पोषह चरचा दिन पंच, साचउं खरतर पक्ष संच ॥२५।। कविराजई निर्णय कीयउं, जूठउं बुद्धि कुठार। ___ साहि पासि जाई कहू. पोषह पर्व विचार ॥२६।। पद्मसुन्दर इम चिंतवई, इणि हाणई मो हानि । साहि पास जाइ कहइं, द्यो हम जीवीदान ॥२७॥ मिगसर वदी बारस दिने, गया साहि आवासि । खरतर पूठइ देवगुरु, तपा गया सब नासि ॥२८॥ साहि हजूर बोलाविआ, श्वेताम्बर क न्याय । हुं करिस ततखिण खरउ, तेड्या पण्डित राय ॥२६।। ढाल हिव तेड्या पंडित रायई, कविराज सभा बोलायई। ___ साधुकीर्ति संस्कृत बोलई,खिरतर कहि केहनइ तोले ॥३०॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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