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________________ १२ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह ए गुरु जोवणीयइ विधि मारगि लीणउ इणिगुरि लोहन मायारे । कसि कंचणीयइ जेम परीखा, दिन दिनि वान सवाया रे । नितु वान सवाया मोह न माया, मन्मथ आण मनाया । पद सोहाया कोमल काया, श्री खरतर गच्छ राया । लय लागी रंगीरसि जिउ रमतउ, अलि मकरंदइ पीणउ । भाग बली गुणि वय जोवणि, जो विधि मारग लोणउ ॥३॥ ए मनि आणदियइ साधु कीरति, बोलइ ए गुरु शील उदारा रे । गुरु सहव दे कूखि मराला, श्रीवन्त साह मल्हारा रे। सिरि वंत मल्हारा श्रीजयकारा, रीहडकुलि सिंणगारा । जग आधारा नितु अविकारा, माणिकसूरि पटधारा ।। चउरासी गण महि गणी निहाल्या, कोइ नहीं इणि तोला । चिरनंदउ जिणचन्द मुनीश्वर, साधुकीर्ति इम बोलइ ।। ४ ॥ राग-देशाख श्रीजिनचन्द्रसूरि गुरु वंदउ, सुललित वाणि करइ रे वखान । युगप्रधान जिन शासनि सोहई, अकबर शाहु दीयइ बहुमान ।।१!! गुजर मंडलतें बोलाये, संतन मुखि सुनि जसु गुणगान । बहुत पडूरि सुगुरु पाउधारइ, वखत योगि लाहोर सुथान ॥२॥श्रीor अरथ विचार पूछि सब विध विध, रीझे अकबर साहि सुजान । बहुत २ दरसनि मइ देखे, कौन कहुं या सुगुरु समान ॥श्री०॥३।। भाग सोभाग अधिक या गुरु कउ, सूरति पाक अमृत समवानि। पेस करइ अकबर अणमांग्ये, सबदुनीयां महि अभयादान ।श्री०।४। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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