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________________ .. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह जाणियइ सुविहित सिरोमणि ए। तसु तण ए पाटि सिंगार, पुह विहिं "पिंडविशुद्धि" करो। इणि जुगी ए एक जोगिंद, श्रीजिनवल्लभ सूरि गुरो ॥१६॥ छंदःगुरु गुण तणउ भंडार गणहर, सयल संयम भर धरो। . वागडी देसि वखाणि जिणध्रम, दससहस श्रावक करो। चीत्रउड ऊपरि देवि चामुंड, प्रसिद्ध जिणि प्रतिबोधिया । तिणि सूरि जिण वल्लह जईसरि, कवण लोय न मोहिया ॥२०॥ श्रीजिनदत्त सूरि गुरु नमउ ए । अम्बिका ए देवि आदेसि, जाणियइ चिहुं जुगे जुग प्रधान । सयंभरी ए राय डइ जेहि, दीधउ श्रोजिनधर्म दान ॥२१॥ छंदःजिनधर्म दानिहि पनरसय मुनि, दीखिया जिण निज करे । वखाण सुणिवा देव आवइ, सेव सारइ बहु परे ।। चउसट्ठि योगिणी नामि देवी, जासु आण न लंघ ए। तसु गुरु तणइ सुपसाइ नंदउ, एहु खरतर संघ ए ॥२२॥ श्रीजिनचंद सूरि नर रयण । नरमणी ए जासु निलाडि, झलहलइ जेम गयणहि दिणंदो। तसु तणइ ए पाटि प्रचंड, श्रीसूरिजिनपति सूरिइंदो ॥२३॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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