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________________ AAAAAAANNAPRA २८ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह मंगल सिरि अरिहन्त देव, मंगल सिरि सिद्धह । मंगल सिरि जुगपवर सूरि, मंगल उवझायह ।। मंगल सुविहिय सव्व साहु, मंगल जिणधम्मह । - मङ्गलु विहरइ सव्व सङ्घ, मङ्गल सन्नाणह ॥ सुयएवि होइ मङ्गलु अमलु, मङ्गलु जिण सासण सुरह । वर सीसह जिणवय सुह गुरुह, मङ्गल सूरि जिणेसरह ।।१५।। माल्हू साख सिंगार साह रतनिग कुलमंडणु। झूदाउत सुख संसि पुहवि धारलदे नंदणु ॥ चउदह सय पनरेतिरइ कसिण आसाढ़ह तेरसि । पट्ट महोच्छव कियड़ साह रतनागर वरसि ।। खरतरह गच्छि उज्जोय करु, जिणचन्द सूरि पटु धरणु । जिणउदय सूरि नंदउ सुपहु, विहिसंघह मङ्गल करणु ॥१६॥ जिम जलहरंमि मोर जिहा वसंतमि कोकिला हुंती । सूरउग्गमणे कमलु तह भविया तुह आगमणे ॥ जिम जलहर आगमणि मोर' हरसिय मण नच्चइ । जिम दिणियर उग्गमणि कमल वणसिरि सिरि विकसइ ।। ससिहर संगम जेम सयल सायरू जल विकसइ । जिम वसंति महियलि हंसंति कोयल मइ मच्चइ ॥ तिम सूरि नाउ जिनउदय गुरु, पट्टाहिव रसि (?वि) उक्कसिय । जिनराजसूरि गुरुदंसणहि भविय नयण मण उल्हसिय ॥१७॥ १ देहलइ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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