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________________ तपागच्छीयकाव्यसार शिवचला गणिनी ( पृ० ३३६ ) पोरवाड़ गेहाकी पत्नी विल्हणदेकी कुक्षिसे जिनकीर्तिसूरि उत्पन्न हुए, उनकी बहिन प्रवर्तिनी राजलक्ष्मी थी। ___सं० १४६३ बैशाख कृष्णा १४ को मेवाड़के देवलवाड़ेमें शिवचूला साध्वीको महत्तरा पद दिया गया, उस समय महादेव संधवीने महोत्सव किया, सोमसुन्दरसूरिने वासक्षेप दिया। रत्नशेखरको वाचक पद दिया गया । और भी पन्यास गणीश स्थापित किए एवं दीक्षा महोत्सव हुए। याचकोंको दान दिया गया, पताकाओंसे नगर सजाया गया और वाजिन बजने लगे। श्रीविजयसिंहमूरि (पृ० ३४१ से ३६४) कवि गुणविजयने सर्व प्रथम सिरोही मण्डण आदिनाथ, ओसवालोंके जिनालयमें श्रीहीरविजयसूरि प्रतिष्ठित श्रीअजितनाथ, शिवपुरीके स्वामी शान्तिनाथ, जीराउला तीर्थपति पार्श्वनाथ, बंभणवाड़ व वीरवाड़के मण्डन श्रीमहाबीर एवं सरस्वती और गुरु श्रीकमलविजयके चरणोंमें नमस्कार करके श्रीहीरविजयसूरिके पट्टधर जेसिंघजी (विजयसेनसूरि ) के पट्टाधीश विजयदेवसूरिके शिष्य विजयसिंहसरिके विजयप्रकाश रासकी रचना प्रारम्भकी हैं, जिन्हें विजयदेवसूरिने अपने पट्टधर स्थापित किया था। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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