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________________ जैन दर्शन और प्राधुनिक विज्ञान जाने वाली हवा में भी असंख्य शरीर-स्कन्ध हैं । वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि एक इंच लम्बी, एक इंच चौड़ी, एक इंव मोटी डिविया में समा जाने वाली हवा में ४४२४००००००००००००००००० स्कन्ध हैं। इस प्रकार पुद्गल व पदार्थ की सूक्ष्मता व निविड़ता के दोनों ही पक्षों में और भी अनेकों उदाहरण उपलब्ध होते हैं । परमारण और व्यवहार परमारण जैन शास्त्रकारों ने परमाणु के दो भेद बतलाये--परमाणु और व्यवहार परमाणु । अविभाज्य और सूक्ष्मतम अणु परमाणु है और सूक्ष्म स्कन्ध जो इन्द्रिय व्यवहार में सूक्ष्मतम से लगते हैं, वे व्यवहार परमाणु हैं । विज्ञान के क्षेत्र में ऐसे दो भेद स्वयं उद्भुत हो गये हैं। जिसे परमाणु माना गया था उसे अब परम+अणु सूक्ष्मतम नहीं कहना चाहिये । पर व्यवहार में उस अणु की पहिचान परमाणु शब्द से ही होती है । वास्तव में तो वह व्यवहार परमाणु ठहरा । जैन दर्शन की दृष्टि से एलेक्ट्रोन आदि अन्य करण भी व्यवहार परमाणु की कोटि में हैं, जैसा कि बताया जा चुका है । प्रकार पुद्गल के प्रकार जैन दार्शनिकों ने इस प्रकार बताये(१) अति स्थूल-भूमि, पर्वतादिक । (२) स्थूल-घृत, जल, तैल आदि । (३) स्थूल सूक्ष्म-छाया, आतप आदि । (४) सूक्ष्म स्थूल-वायु व अन्य प्रकार की गैसें । (५) सदम-भाषा, मन, व काय की वर्गणा । (६) अति सूक्ष्म-द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी, आदि स्कन्ध । विज्ञान के क्षेत्र में पदार्थ को तीन भेदों में बाँटा गया है। ठोस (Solid), • तरल (Liquid) और वाष्प (Gas)। ये तीनों भेद पूर्वोक्त भेदों में प्रथम, द्वितीय व चतुर्थ में समा जाते हैं । दार्शनिकों की दृष्टि में इन भेदों के अतिरिक्त और भी पदार्थ थे, इसलिये उन्होंने छव भेद किये। परमाणु विभेद के पश्चात् जो विभिन्न प्रकार के पदार्थ कण सामने आये तो वैज्ञानिकों के तीन भेद भी अब केवल कहने भर को रह गये हैं। दार्शनिकों ने विभिन्न अपेक्षाओं से प्रयोग परिणत, मिश्र परिणत व विस्रसा परिणत आदि अनेकों भेदों में पुद्गल को बाँटा है । शब्द-विचार जैन शास्त्रों ने पुद्गल के ध्वनि रूप परिणाम को शब्द कहा है। वह ध्वनि रूप परिणाम कैसे बनता है, इसकी थोड़ी सी चर्चा पंचास्तिकाय सार में मिलती है। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002599
Book TitleJain Darshan aur Adhunik Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1959
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size7 MB
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