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________________ परमाणुवाद ५६ I स्कन्धों तक ही प्रभावित कर सकता है ।' सारांश यह हुआ - वैज्ञानिक जिस परमाणु के पीछे पड़े थे, जैन दर्शन के अनुसार वह अनेक परमाणुत्रों से संघटित कोई स्कन्ध ही था । और अब तो यह प्रयोगशालाओं में सुस्पष्ट हो ही चुका है कि जिस परमाणु को प्रच्छेद्य, अभेद्य और सूक्ष्मतम माना था वह वैसा नहीं है । उसमें पहले एलेक्ट्रोन और प्रोटोन का पता चला । फिर ज्यों-ज्यों इस विषय में विकास हुआ प्रोटोन भी एक शाश्वतिक इकाई नहीं रहा, उसमें भी न्यूट्रोन और पोजीट्रोन समझौते पूर्वक इकाई बना कर बैठे थे । इलेक्ट्रोन उपलब्ध प्रणुत्रों में सबसे छोटा है । पर लगता है वैज्ञानिक इसे भी परम + अणु = सबसे छोटा प्रणु कहने का साहस नहीं करेंगे । यदि करेंगे तो सम्भव है वह भी सुदूर भविष्य में मिथ्या प्रमाणित हो जाये। जैन दर्शन की परिभाषा से तो एलेक्ट्रोन परमाणु है ही नहीं । क्योंकि वह मनुष्य कृत नाना प्रक्रियाओं से प्रभावित होता ही रहता है । यह तो वैज्ञानिकों के बायें हाथ का खेल बनता जा रहा है कि एलेक्ट्रोनों को कहीं से हटा देना और कहीं लगा देना | न्यूट्रोनों को घटा बढ़ा कर २ मौलिक तत्त्वों की तरह समस्थानीय दूसरे मौलिक तत्त्व बनायें जाने लगे हैं । नाभिकरण को तोड़ना न्यूट्रोन का काम है । वह कभी नाभिकरण को तोड़कर निकल जाता है और कभी-कभी स्वयं नाभिकरण इस प्राक्रमरणकारी को पकड़ कर अपने पास रख लेता है । यदि यूरेनियम का नाभिकरण न्यूट्रोन को पकड़ लेता है तो उसकी भूत मात्रा २३८ के स्थान पर २३९ हो जाती है । इसी प्रक्रिया से वैज्ञानिकों ने यूरेनियम् से आगे नेप्तूनियम् नामक ६३वाँ रसायनिक तत्त्व और बना लिया है । परमाणु 1 के उदरस्थ जितने ही करण हैं, जैन दर्शन की परिभाषा के अनुसार वे सूक्ष्मतम या परमाणु कहलाने के उपयुक्त नहीं हैं । उसके अनुसार आज तक के खोजे गये ये सूक्ष्मकण असंख्य व अनन्त प्रदेशात्मक स्कन्ध ही हैं । यह केवल एक कल्पना की बात है कि अब एलेक्ट्रोन आदि करणों में टूटने का कोई अवकाश नहीं है । यह बात तो कल तक परमाणु को लेकर भी कही जाती थी कि बस यह अन्तिम करण है, इसमें टूटने का अवकाश नहीं है, किन्तु आज प्रकृति ने अपने रहस्य को मनुष्य के लिए थोड़ा खोल दिया है । इससे आगे वह मनुष्य के हाथों अपना रहस्य खोले या न खोले, पर अतीन्द्रिय प्रेक्षकों ने जिस परमाणु का दिग्दर्शन कराया है, वहाँ तक मनुष्य अपने इन्द्रिय सामर्थ्य से पहुँच सकेगा, यह सम्भव नहीं है । स्कन्ध मूर्त द्रव्यों की एक इकाई स्कन्ध है । दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है, दो से लेकर यावत् अनन्त परमाणुत्रों का एकीभाव स्कन्ध है । किन्तु इसके साथ इतना और जोड़ना होगा कि विभिन्न परमाणुओं का एक होना जैसे स्कन्ध है, वैसे विविध Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002599
Book TitleJain Darshan aur Adhunik Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1959
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size7 MB
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