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________________ परमाणुवाद ८७-फ्रांसियम् ८८-रेडियम् ८६-- अक्टीनियम् १०-थोरियम ६१-प्रोटोअक्टीनियम् ____६२-यूरेनियम् मौलिक तत्त्वों का संगठन . ई० सन् १८११ तक अणु ही सबसे सूक्ष्म तत्त्व समझा जाता था। क्योंकि तब तक यह धारणा थी–सोना, चांदी, लोहा आदि मौलिक तत्त्व एक दूसरे में बदलते नहीं। इसलिए सोना, चांदी आदि के सूक्ष्मतम अणु ही मूलभूत हैं। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक अवोगद्रा ने अणु से परमाणु को अलग किया। २६ साल तक परमाणु सूक्ष्म अवयव रहा। फिर १८६७ ई० में सर जे. जे. टामसन (Sir J. J. Tomson) ने परमाणु के अन्वेषण के समय एक टुकड़ा पाया जो छोटे से हाइड्रोजन परमाणु से भी अत्यन्त छोटा था। इसी रहस्यमय अणु ने परमाणुवाद का कायापलट ही कर दिया । जो परमाणु ठोस सूक्ष्मतम इकाई के रूप में माना गया था, विविध अन्वेषणों से उसी परमाणु में ढोल में पोल वाली बात निकली। टामसन के शिष्य रदर फोर्ड (Rathar Ford) ने परमाणु के भीतरी ढांचे के बारे में बहुत महत्त्वपूर्ण खोजें की। इसलिए लोग उसे परमाणु का पिता भी कहते हैं । यही छोटा परमाणु का टुकड़ा एक महत्त्वपूर्ण भाग इलेक्ट्रोन कहा जाता है। परमाणु के नये रूप को समझ लेने के पश्चात् सोना, चांदी आदि मूलभूत तत्त्व एक नए स्वरूप से ही पहचाने जाने लगे। परमाणु का वर्तमान स्वरूप-छोटे से छोटा अणु जो परमाणु नाम से पहचाना जाता था उसके उदर में सौर परिवार (Solar System) का एक नया संसार निकल पड़ा है। प्रत्येक परमाणु में अनेकों कण हैं। कुछ केन्द्र में स्थित हैं और कुछ उसी केन्द्र की नाना कक्षाओं में निरन्तर अत्यन्त तीव्र गति से परिभ्रमण करते हैं; जैसे कि सूर्य के चारों ओर शनि, बुद्ध, मंगल, शुक्र आदि ग्रह । केन्द्रस्थ करणों में धन विद्युत् और परिक्रमाशील कणों में ऋण विद्युत् होती है। सारे परमाणु ६२ मौलिक भेदों में इसलिए बंट जाते हैं कि उनकी संघटना में ऋणाणुओं और धनाणुओं का क्रमिक अन्तर रहता है। हाइड्रोजन परमाणु-१२ तत्त्वों में पहला तत्त्व हाइड्रोजन है । यह एक प्रकार की गैस है, जिसका पता कनेण्डिस ने १७६६ ई० में लगाया था। इसका परमाणु सबसे छोटा यानी हलका परमाणु है । १६वीं सदी के प्रथम चरण में यह समस्त तत्त्वों का मूल माना गया था, किन्तु अब वैज्ञानिक क्षेत्र में इस बात का कोई महत्त्व नहीं रह गया है। अब यह ६२ तत्त्वों में पहला स्वतन्त्र तत्त्व सिद्ध हो चुका है । इस हाइड्रोजन परमाणु के व लेवर में केवल एक धनाणु है जिसे प्रोटोन (Proton) कहते हैं और एक ऋणाणु है जिसे इलक्ट्रोन (Electron) कहते हैं । धन बिजली का कार्य है, किसी Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002599
Book TitleJain Darshan aur Adhunik Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1959
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size7 MB
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