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________________ १०४ जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान मावश्यकता पड़ती है। " -डॉ० गाल "पृथ्वी पर जीवन का आरम्भ कैसे हुआ विज्ञान के पास इसका कोई उत्तर नहीं हैं।" -जे० ए० थौमसन उक्त प्रमाणों के आधार पर निस्सन्देह कहा जा सकता है कि अपने क्रमिक विकास में विज्ञान प्रात्मवादी होता जा रहा है । इस तथ्य को दूसरे शब्दों में इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि आत्मा के अस्तित्व पर दर्शन व विज्ञान एक होते जा रहे हैं । दर्शन व विज्ञान की यह अभिसंधि विश्व के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ देती है। आज जहाँ समाज व्यवस्था में लोकोत्तर पक्ष उपेक्षित रहता है, वहाँ पुनर्जन्म के विषय में निष्ठा का नवजागरण हुना तो धर्म भी समाज-व्यवस्था के निर्माण में अपना समुचित स्थान ग्रहण करेगा जैसे कि भारतीय संस्कृति व परम्परा में प्राचीनकाल से उसने कर रक्खा है। भारतीय दार्शनिकों ने बताया कि जीवन का परम ध्यये सद् चिद् प्रानन्द व सिद्ध बुद्ध अवस्था को प्राप्त करना है। व्यक्ति चाहे गृहस्थ है या सन्यस्त, उसके जीवन की दिशा इस ओर ही होनी चाहिये । विज्ञान के इस नये निर्णय से केवल लौकिक पक्ष का पोषण करने वाली मार्क्सवादी विचारधारा अपने प्राप ढह पड़ती है। इसका तात्पर्य यह नहीं कि इससे संसार में समानता का नारा समाप्त हो जाता है व अर्थवादी दृष्टिकोण अदृष्ट हो जाता है, किन्तु इसका तात्पर्य यह है कि समानता की मंजिल तक पहुँचने के लिये मनुष्य बर्वर व हिंसानिष्ठ नहीं बनता । अस्तु, इसी प्रकार आज की राजनीति, आज की समाज-व्यवस्था व माज के समस्त वाद-प्रवादों में एक मौलिक परिवर्तन अवश्यंभावी है जब कि वे विज्ञान की इस नवीन तुला पर तोले जायेंगे । विज्ञान के इन नवीन निर्णयों से प्राज के तार्किक मानव को यह समझने का 1. In my opinion there exists but one single principle which sees, hears, feels, loves, thinks remembers, etc. But this principle requires the aid of various material instruments in order to manifest its respective functions. -Dr. Gall. 2. How did living creatures begin to be upon the earth ? In point of science, we do not know. -Introduction to Science, p. 142. Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002599
Book TitleJain Darshan aur Adhunik Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1959
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size7 MB
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