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________________ २८४ ] [ नियुक्तिसंग्रह: :: ( ३ ) श्री पिण्डनियुक्ति: ।। ६६ ।। एमेव उज्झियंमिवि प्राहाकम्मंमि प्रकयए कप्पे । होइ अभोज्ज भाणे जत्थ व सुद्धेऽवि तं पडियं ।। ६६ ।। तुच्चारसरिच्छ्रं कम्मं सोउमवि कोविओ भीओ । परिहरइ सावि य दुहा विहिअविहीए य परिहरणा ।। ९७ ।। 5 सालीओअणहत्थं दट्ठ भई अकोविप्रो देति । कत्तोच्च उत्ति साली ? वणि जाणइ पुच्छ तं तु ॥ ६८ ॥ गंतण श्रावणं सो वाणियगं पुच्छए कओ साली ? | पच्चते मगहाए गोब्बरगामो तहि वयइ कम्मासंकाएँ पहं मोत कंटाहिसावया अदिसि । 10 छायंपि विवज्जयंतो उज्झइ उण्हेण मुच्छाई ॥ २०० ॥ इय अविही-परिहरणा नाणाईणं न होइ आभागी । saकुलदेस भावे विहिपरिहरणा इमा तत्थ ।। २०१ ।। ओयण समिइमसत्त ग कुम्मासाई उ होंति दव्वाई । बहुजणमप्पजणं वा कुलं तु देसो सुरट्ठाई ॥। २०२ ।। आयारsणायर भावे सयं व प्रन्नेण वाऽवि दावणया । एएसि तु पयाणं चउपयतिपया व भयणा उ ।। २०३ ।। प्रणुचियदेसं द ( स ) व्वं कुलमप्पं आयरो य तो पुच्छा । बहुवि नत्थि पुच्छा सदसदविए अभावेऽवि ॥ २०४ ॥ तुज्झट्ठाए कयमिण-मन्नोऽन्नमवेक्खए य सविलक्खं । 20 वज्जति गाढरुट्ठा का भे तत्तित्ति वा गिहे । २०५ ।। गूढायारा न करेंति आयरं पुच्छियावि न कहेंति । थोवंति व नो पुट्ठा तं च अशुद्धं कहं तत्थ ? ।। २०६ ।। 15 Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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