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________________ ४८९ सीहकुमारकहा गोवालो सो विहिओ लिहियाउ न लब्भए अहियं ॥ १२७९ ।। गोमहिसिचारणपरे, इमम्मि दुद्धरधणुद्धरो पत्तो ।। पाउससमओ गिम्हो, वरिवरिसंतो सरा सारं ॥ १२८० ।। जाव इमो आगच्छइ पुरम्मि ता अंतरम्मि कूलाणं॥ दोण्ह वि पाडण निरयं, पिच्छइ सरियं सलिलभरियं ।। १२८१ ।। गोमंडलेण सहिओ वसिओ एसो नईए परकूले ।। रिद्धीए समारंभे पायं नीया दूरवगाहा ।। १२८२ ।। दुद्धरपुरा सहसा पाडइ तडरूढविडविसंघायं ।। चिर सेवयं पि कुपहू,निक्कंदइ विहवमारूढो ॥ १२८३ ।। मंदायमाणपूरा, जाया एसा पभायसमयम्मि ।। नीयाण संपया खलु, न होइ न चिरं हवइ अहवा ।। १२८४ ।। पाडिय तडस्स मज्झे, मुहकमलं मणिमयाए रम्माए । रिसहेसर-पडिमाए निएइ पयडं च निय पुनं ।। १२८५ ।। अप्पं भवाउ तह जिणबिंबं उद्धरइ धरणि मज्झाओ॥ सह अप्पणाय सरिया जलेहि तं कुणइ निप्पंकं ॥ १२८६ ॥ थुणिऊण सरिसमीवे, कारइ एसो कुडीरयं तत्थ ।। तं न्हवइ सया पूयइ, पणमइ परमाए भत्तीए ॥ १२८७ ।। नयराउ नीहरंतो, अंतो नयरस्स सो विसंतो य ।। महिमिलियमउलिकमलो, नमइ जिणिदं सरोमंचो ।। १२८८ ॥ विनवइ अन्नदियहे, सामि ! न जाणामि सत्थपरमत्थं ।। किं पुण तुमं नमंसिय, नियमेण अहं जिमिस्सामि ॥ १२८९ ॥ पइ दियहं जिणनाहं तस्स नमंतस्स अन्नसमयम्मि । विरहिणिकालकयंतो, वासारत्तो समणुपत्तो ॥ १२९० ॥ सीहो जाव पुराओ, निग्गच्छइ ता पुणो वि सा सरिया ॥ गहिऊण दो वि कूले, चिट्ठइ विलसंतजलहभरिया ॥ १२९१ ॥ गहिऊण सुरहिवंद्रं सुबंधुसिट्ठिस्स सो गिहे पत्तो ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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