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________________ अनंतकित्तिकुमारकहा ३१३ अहवा किह सा होही एसा छेउ त्ति हरियजणहियया । सरिसा य विसरिसा वि य इंति पयत्था जओ भवणे ॥११७४।। सह तीए सत्थवाहो रायं पणमित्त पवहणारूढो । वीसज्जिओ य रत्ना गच्छइ सह-सउणसुनिमित्तो ॥११७५।। वहणाणि तस्स सहसा, समीरसममीसियाए वेगेण । गच्छंति कयत्थाणि व, अदिट्ठपारे नईनाहे ॥११७६।। अन्नं नयरं रनो, कहियं अनेण तेण वहणाणि ।। मग्गेण पेरियाई, पच्छागमणस्स भीएण ॥११७७॥ संकियचित्तो तत्तो, वलिओ राया वि झ त्ति संपत्तो । भूमीहरं नियच्छइ, सन्नं पायालकनाए ॥११७८।। उव्वरिओ विवसो विक्कयाओ आहवइ मंति-सामंते । साहइ जह इह हरिया मह दइया तेण धुत्तेण ॥११७९।। सामंत-मंति-पमहा हरणपओगस्स जाणणनिमित्त सम्म निरूवयंता नियंति वीडय-सरंगाई ॥११८०॥ तो तीए सरंगाए अणंगदेवस्स मंदिरं पत्ता । तं पि हु नियंति सुन्नं समग्गपरिवार-परिमुक्कं ॥११८१ ।। रोसपिसल्लगहिल्लो निवो निजंजेइ निययसामंते । गच्छह गच्छह तुरियं आणह पावाणि मह पासे ॥११८२ ।। किं को वि अत्थि भवणे धीरो वीरो य मज्झ सुहडेसु । जो तं झड त्ति पावं आणइ सह तीए मह नयरे ॥११८३ ।। इच्चाइ उच्चसई जंपतो सयलसिनपरियरिओ । अकलियतत्तो मूढो, जलनिहितीरम्मि संपत्तो ॥११८४॥ वहणाण समूहेहिं तहेव सत्थाहसव्वलोएहिं । जलनिहितीरं सन्नं सनमणो पिच्छए राया ।।११८५।। आइसइ नावियजणं वहणे पउणी करित्तु रे चलह । जपति ते वि सामिय ! न हु एसा गंधियप्पुडिया ॥११८६।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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