SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ललितांगकुमरकथा तेहिं भणियं च देवी, पुरओ वित्तिय इमं करह । अज्ज इमीए भत्ता, निस्संताणो विविन्नति ॥ २९७॥ तस्स य दव्वं सव्वं, पि धुत्तचरियाए धिट्ठ - हिययाए । भुयवलि व्व इमीए दिसोदिसं कहवि पक्खित्तं ॥२९८॥ सिरि करणिय आएसा एसा कुट्ठारमज्झयारम्मि । पक्खिवणिज्जा संपइ देवी वयणं पमाणं ति ॥ २९९ ॥ मारूयसु तुमं अबले ! बलमहयं चेव तुज्झ इय बहुलं । आसासिय देवीए विनत्तिं सा वि कारविया ॥ ३००॥ तहाहि देवि ! इहेव य नयरे सिट्ठी निवसइ विसिट्ठजणतिलओ । धण- वित्थारविणिज्जिय धणओ नामेण धमित्तो ||३०१ ॥ तस् य पाणपिया हं धणस्सिरी नवरि कीविणलच्छि व्व । भावरहिय व्व किरिया, उच्छुलट्ठि व्व फलरहिया ॥ ३०२ ॥ पिययमपसायसुहिया सारं सज्जेमि अंगसिंगारं । किमिलाउहला तुज्झे इय समयवियाउरी निंदे ॥ ३०३॥ पुत्तत्थे न हु कइया कलिमलपक्खालिणी मए विहिया तित्थंकराण पूया न पत्तदाणं मए दिनं ||३०४ || तिव्वं तवो न चिन्नं न या वि आराहिया सकुलदेवी । जाणग जोइसिया विहु न य पुट्ठा पुत्तकज्जम्मि ||३०५॥ एमेव लडह - लायन - गव्व-वाएण लहलहंतीए । डिमासु-सुरालय - धय- सरिसाए गओ कालो ||३०६ ॥ अह अवरवासरे मह पइणो सिर- वेयणा समुब्भूया । ती नट्ठा निद्दा ववगय- पुन्नस्स लच्छि व्व ॥३०७॥ झत्ति सक्कियहियओ सुयरहिओ चिंतए यधमत् । को मह जिणबिंबाणं सया वि पुज्जं विणिम्मविही ॥ ३०८ ॥ मह माया मह भइणी मह दइया रायलोय लुप्पंती । Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only २४५ www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy